खरगोश बहुत ही सुन्दर प्राणी है। इसे कई लोग अपने घर में पालते भी हैं। यदि आप भी पशु पालन में रूचि रखते है। और इस रूचि की सहायता से लाभ प्राप्त करना चाहते हैं। तो खरगोश पालन व्यापार आपके लिए बहुत बेहतर साबित हो सकता है। खरगोश पालन में सबसे अधिक आसानी इस बात से होती है। कि इस जानवर से किसी भी तरह का डर नहीं होता। क्योंकि यह मांसाहारी नहीं है।
किसानों एवं बेरोजगार युवाओं के लिए एक कम लागत, कम समय में बड़े मुनाफे का व्यापार है। रैबिट फॉर्मिंग। इसके ऊन और मीट से पांच-छह सप्ताह के भीतर लागत की दोगुनी कमाई हो जाती है। खरगोश का मीट वसा की दृष्टि से स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी होता है। खरगोश के मीट में तुलनात्मक रूप से ज्यादा प्रोटीन, वसा और कैलोरी कम होती है। साथ ही इसका मीट आसानी से सुपाच्य होता है। इसमें कैल्शियम और फॉस्फोरस अधिक होता है। इसमें तांबा, जस्ता और लौह तत्व शामिल होते हैं। सभी उम्र के लोग इसका सेवन कर सकते हैं। दिल के मरीजों के लिए यह अत्यंत लाभप्रद माना जाता है। खरगोश को पिंजड़े में पाला जा सकता है। जो मामूली खर्च से तैयार हो जाता है।
मुर्गियों की तरह खरगोशों की बिक्री में गिरावट भी नहीं आती है। चारे की व्यवस्था बहुत आसानी से हो जाती है। अब तो अच्छी बढ़ोतरी के लिए कुछ कंपनिया खरगोश के लिए विशिष्ट खाद्यान्न भी बनाने लगी हैं। खरगोश का मीट भारी मात्रा में विदेशों को निर्यात हो रहा है। इसके निर्यात में भारत अभी विश्व में तीसवें स्थान पर है हालाकि अभी तेजी से खरगोश पालन व्यवसाय भारत के सभी राज्यों में फ़ैल रहा है। भारतीय क़ानून के तहत भारतीय खरगोश को पकड़ना, मारना व रखना मना है। लेकिन 1960 अधिनियम के तहत विदेशी खरगोश को पालने व रखने की अनुमति है।
यह उपजाति मुख्यतः ऊन उत्पादन के लिए पाली जाती है। इससे शरीर का रंग सफेद होता है। इसकी ऊन हर 75 दिनों में काटी जा सकती है। इसकी ऊन की लंबाई 75 दिनों में 5 से 6 सें.मी. होती है। यह एक वर्ष में लगभग 800 से 1000 ग्राम तक ऊन देने में सक्षम है। वयस्क अंगोरा का वजन 3 से 4 कि.ग्रा. होता है। अंगोरा खरगोश की रशियन, जर्मन व ब्रिटिश अंगोरा आदि मुख्य उप-प्रजातियां हैं (जिनमें जर्मन अंगोरा से सबसे अधिक ऊन प्राप्त की जा सकती है।
हिमाचल के ही गोहर (मंडी) में एक बार फिर अंगोरा खरगोश पालन को बढ़ाना देने के लिए निजी कंपनी के उद्योगपति सक्रिय हो गए हैं। देश-विदेश में अंगोरा खरगोश की ऊन की मांग एकाएक बढ़ गई है। अंगोरा खरगोश पालन में देश-विदेश में नाम कमाने वाले मंडी, कुल्लू और कांगड़ा जिलों में एक बार फिर इस व्यवसाय के दिन बहुर गए हैं। अंगोरा ऊन का भाव आजकल 1600 रुपये से लेकर 2000 रुपये किलो तक है। देश विदेश में अंगोरा ऊन का धागा, अंगोरा मफलर, अंगोरा टोपी और अंगोरा शॉल की बाजार में भारी मांग है। मंडी, कुल्लू, कांगड़ा में करीब दो हजार किसान अंगोरा खरगोश पालन से जुड़े हैं।
खरगोश पालन आरम्भ करने के लिए खरगोश की एक न्यूनतम संख्या होती है। जिसके नीचे यदि खरगोश पाले गये। तो शायद उतना मुनाफा न प्राप्त हो। इस फार्म को आरम्भ करने के लिए कम से कम 10 यूनिट खरगोश होने आवश्यक हैं। एक यूनिट में 10 खरगोश होते हैं। अतः इस तरह से किसी खरगोश फार्म को खोलने के लिए कुल 100 खरगोशों की आवश्यकता होती है। इन 100 खरगोशों में लगभग 65-70 मादा और 30- 35 नर खरगोशों की आवश्यकता होती है।
खरगोशों को दाना, गोली या चूरे के रूप में दिया जाता है। गोली के रूप में खरगोश दाना अच्छी प्रकार से खाता है। तथा इसमें दाना बहुत ही कम व्यर्थ होता है। परन्तु यह दाना मंहगा पड़ता है तथा दाने में क्या मिलाया है I यह पता लगाना भी मुश्किल होता है। किसान भाई दाना अपने ही घरों में चूरे के रूप में बना सकते हैं।
चूरे के रूप में खरगोश को खाने में कोई कठिनाई नहीं होती है। खाद्यान्न ज्यादा बारीक पिसे हुए नहीं बल्कि दरड़े हुए होने चाहिए। ताकि आहार व्यर्थ न हो तथा खरगोशों को छींकों की दिक्कत न हो। छोटे शिशुओं को 15 दिनों का होने पर दाना दरड़कर देना शुरू करना चाहिए।
विनिंग (छठे सप्ताह) के बाद खरगोश को 30 से 40 ग्राम, 60 से 65 दिनों के खरगोश को 50 से 60 तथा 4 से 6 महीने के खरगोश को 80 से 100 ग्राम दाना प्रतिदिन देना चाहिए। गाभिन एवं दूध देने वाली मादाओं के लिए हर समय दाना एवं चारा उपलब्ध होना चाहिए।
खरगोश पालन के लिए फार्म आमतौर पर ऐसे स्थानों पर स्थापित करने की आवश्यकता होती है। जहाँ पर प्रदूषण और शोर गुल कम हो। आप ये फार्म शहर से दूर स्थापित करें तो ही बेहतर होता है। फार्मिंग गाँव में हो तो काफ़ी अच्छा होता है। खरगोशों को मौसमी परिस्थितियों जैसे तेज गर्मी, बरसात और कुत्तों, बिल्लियों से बचाने के लिए शेड आवश्यक होता है। शेड चार फिट चौड़ा, दस फिट लम्बा और डेढ़ फिट ऊंचा होना चाहिए। अब पार्टीशन देकर दो-बाइ-दो के दस बराबर बॉक्स बना लिए जाते हैं। शेड को ज़मीन से दो फिट ऊंचाई पर रखते हैं, जिससे खरगोश के अपशिष्ट सीधे ज़मीन पर गिरें। रैबिट फार्मिंग का पिछले कुछ सालों से कारोबार बढ़ता जा रहा है। सैकड़ों लोग इससे अच्छी कमाई कर रहे हैं। खरगोश को खास तौर से मीट और इसके ऊन के लिए पाला जाता है।
फार्म स्थापित करने के लिए कुल 100 खरगोशों का मूल्य 2,50,000 रूपए के आस पास का होता है।इस पैसे में आपको खरगोश के साथ- साथ खरगोश रखने के लिए 10/4 का पिंजरा आदि आ जाता है। इसके अतिरिक्त आपको खरगोश को खिलाने के लिए कटोरियाँ और पानी के लिए वाटर निप्पल भी प्राप्त होता है।
खरगोश पालन से लोगों को कई तरह से लाभ प्राप्त हो सकते हैं। सबसे पहले तो इस व्यापार को उन लोगों से लाभ प्राप्त होता है। जो खरगोश पालना चाहते हैं। क्योंकि किसी भी फार्म में अलग अलग ब्रीड के खरगोश मौजूद होते हैं। अतः जो भी व्यक्ति खरगोश पालना चाहता है। उन्हें फार्म कई तरह के विकल्प प्रदान करती है। इस तरह से विभिन्न तरह के ब्रीड के खरगोश अपने फार्म में पालने से आपको अच्छा लाभ प्राप्त हो सकता है। इसके अलावा भी खरगोश पालन में अन्य तरह से लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
खरगोश पालने के दौरान अपने फार्म में कुछ विशेष सावधानियाँ बरतने की आवाश्यकता होती है। फार्मिंग से सम्बंधित विशेष सावधानियों का वर्णन किया जा रहा है।
रोगी खरगोशों को अलग कमरे में रखकर इलाज करवाना चाहिए। मरे हुए खरगोशों के दबाने या जलाने की उचित व्यवस्था हो, ताकि रोग फैलने का भय न रहे।
अत: इन्हीं बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिये। पिंजरों की सफाई प्रतिदिन झाडू या तार ब्रश से करनी चाहिए व इन्हें कीटाणुमुक्त करने के लिए हर महीने आग से जलाकर साफ करना चाहिए। खरगोशशाला में हर 15 दिनों में चूने इत्यादि का छिड़काव करते रहना चाहिए।