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बकरीद 2022

बकरीद 2022

बक़रीद का त्योहार क्यों मनाया जाता है 

ईद-उल-जुहा का सही मतलब है कुर्बानी की ईद क्यों कि हज़रत इब्राहिम अपने पुत्र हज़रत इस्माइल को अल्लाह के हुक्म पर में क़ुर्बान कर रहे थे। अल्लाह उनके सही जज़्बे को देखते हुए उसके बेटे को जीवन-दान दे दिया था। 

वह तारीख इस्लामी कैलेंडर के अनुसार धू-अल-हिज्जा महीने की 10 तारीख थी। उसी की याद में दुनिया के मुसलमान बक़रीद का त्यौहार मनाते हैं। अल्लाह के हुक्म पर इंसानों की नहीं जानवरों की कुर्बानी देने का इस्लामिक कानून शुरू हो गया। 

मक्का मदीना में हज का तारीख भी इसी बक़रीद त्योहार के साथ होता है। जो लोग हज़ करने के लिए सऊदी अरब जाते हैं। वह वहीं पर जानवरों की कुर्बानी देते हैं। 

बक़रीद का सही नाम 

 ईद (रमजान के बाद) के लगभग 70 दिनों के बाद मनाई जाने वाली ईद को ईद-उल-जुहा यानि बक़रीद को कहते हैं। इंटरनेट पर हमारे मित्र eid ul azha, eid qurbani और eid ul zuha ना जाने कितने अनेक शब्दों के जरिए ईद-उल-जुहा सर्च करते हैं। इस त्यौहार को अंग्रेजी में Eid al-Adha कहते हैं।

ईद उल-अज़हा का अर्थ

ईद उल-अज़हा बलिदान यानी कुर्बानी का त्यौहार का जाता है। मुसलमान इस त्यौहार में अल्लाह के नाम पर जानवरों की कुर्बानी देते हैं।

बकरीद क्या होती है

ईद उल-अज़हा, मुसलमानों का दूसरा सबसे बड़ा त्यौहार है। बकरीद के दिन लोग नए कपड़े पहनकर ईदगाह व मस्जिद जाते हैं। नमाज की अदायगी के बाद जानवरों की कुर्बानी (बलि) देते हैं. 

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 इस्लाम में बकरीद का महत्व

इस्लाम मजहब में दो ईदें त्योहार के रूप में मनाई जाती हैं। ईदुलब फित्र जिसे मीठी ईद भी कहा जाता है। और दूसरी ईद है बकरा ईद। इस ईद को आम आदमी बकरा ईद भी कहता है। ईद-उल-अजहा (ईदे-अजहा) के दिन आमतौर से बकरे की कुर्बानी की जाती है। शायद इसलिए इस ईद को बकरीद कहा जाता है। वैसे इस ईद को ईदुज्जौहा औए ईदे-अजहा भी कहा जाता है। इस ईद का गहरा संबंध कुर्बानी से है। पैगम्बर हज़रत इब्राहीम को खुदा की तरफ से हुक्म हुआ कि कुर्बानी करो, अपनी सबसे ज्यादा प्यारी चीज की कुर्बानी करो।

हजरत इब्राहीम के लिए सबसे प्यारी चीज थी। उनका इकलौता बेटा इस्माईल। लिहाजा हजरत इब्राहीम अपने बेटे की कुर्बानी करने के लिए तैयार हो गए। इधर बेटा इस्माईल भी खुशी-खुशी अल्लाह की राह में कुर्बान होने को तैयार हो गया। मुख्तसर ये कि ऐन कुर्बानी के वक्त हजरत इस्माईल की जगह एक दुम्बा कुर्बान हो गया।​ ​​​​​​खुदा ने हजरत इस्माईल को बचा लिया और हजरत इब्राहीम की कुर्बानी कुबूल कर ली। तभी से हर साल उसी दिन उस कुर्बानी की याद में बकरा ईद मनाई जाती है। और कुर्बानी की जाती है।
इस दिन आमतौर से बकरे की ही कुर्बानी की जाती है। बकरा तन्दुरुस्त और बगैर किसी ऐब का होना चाहिए यानी उसके बदन के सारे हिस्से वैसे ही होने चाहिए। जैसे खुदा ने बनाए हैं। सींग, दुम, पांव, आंख, कान वगैरा सब ठीक हों, पूरे हों और जानवर में किसी तरह की बीमारी भी न हो। कुर्बानी के जानवर की उम्र कम से कम एक साल हो। अपना मजहबी फरीजा समझकर कुर्बानी करना चाहिए।

लेकिन आजकल देखने में आ रहा है कि इसमें झूठी शान और दिखावा भी शामिल हो गया है। 15-20 हजार से लेकर लाख, दो लाख का बकरा खरीदा जाता है। उसे समाज में घुमाया जाता है। ता‍कि लोग उसे देखें और उसके मालिक की तारीफ करें। इस दिखावे का कुर्बानी से कोई तआल्लुक नहीं है।
कुर्बानी से जो सवाब एक मामूली बकरे की कुर्बानी से मिलता है। वही किसी महंगे बकरे की कुर्बानी से मिलता है। अगर आप बहुत पैसे वाले हैं। तो ऐसे काम करें जिससे गरीबों को ज्यादा फायदा हो। अल्लाह का नाम लेकर जानवर को कुर्बान किया जाता है।

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बकरीद में जानवरों की कुर्बानी क्यों दी जाती है  

पैगंबर इब्राहिम अपने बेटे इस्माइल को अल्लाह के नाम पर बलिदान करने का सपना आता है। उसे पूरा करने के लिए जब अपने बेटे के गर्दन पे चाकू रगड़ना शुरू करते हैं। तो अल्लाह का निर्देश आता है। ऐ इब्राहिम अल्लाह के इम्तिहान में पास हो गया।

अल्लाह ताला उसके बाद हिदायत देते हैं। कि आप कुर्बानी के लिए जानवर को चुनें. इसीलिए मुसलमान बकरी, भेड़, गाय या ऊंट की कुर्बानी देते हैं।

 

बकरीद में जानवरों की कुर्बानी कैसे दी जाती है 

बकरीद में जानवरों की कुर्बानी देने का इस्लामिक तरीका है। जानवर को पहले अच्छे से खिलाया पिलाया जाता है। उसके बाद दुआ पढ़ी जाती हैं। और फिर उसके बाद जानवर को लिटा कर उसे जबह कर दिया जाता है।

बकरीद का त्यौहार कब और कितने दिनों तक मनाया जाता है

इस्लामिक कैलेंडर के बारहवें महीने जु-अल-हज्जा की दसवें, 11वीं और 12वीं तारीख को मनाई जाती है। और यह त्यौहार 3 दिनों का होता है। इस्लामिक कैलेंडर चांद के अनुसार होता है। यही कारण है कि प्रत्येक वर्ष इस्लामिक दीवारों की तारीख की बदलती रहती है।

ईद उल-अज़हा 3 दिनों का त्यौहार होता है। ईद उल-अज़हा को ही भारत, पाकिस्तान एवं बांग्लादेश में बकरीद कहा जाता है। 3 दिन के दौरान हज के सभी अरकानों को पूरा किया जाता है।

बकरीद में मुसलमान क्या उपहार देते हैं

बकरीद के दिन मुस्लिम परिवार जानवरों की कुर्बानी देने के बाद, जानवर के गोश्त के तीन हिस्से करते हैं। पहला हिस्सा अपने घर में रखते हैं। दूसरा हिस्सा दोस्तों को उपहार स्वरूप देते हैं। और तीसरा हिस्सा गरीबों के बीच बांट देते हैं।

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 ईद और बकरीद में क्या अंतर है? 

 ईद की तरह बकरीद भी खुशी के साथ मनाई जाती है। बस ईद-उल-फितर और बकरीद में में फर्क इतना है कि ईद-उल-फितर खुशी के तौर पर देखा जाता है। रमजान के तोहफे के तौर पर मनाई जाती है। और eid-ul-adha यानी की बकरीद गरीब और मुस्लिमों के लिए उनके साथ मिलकर मनाई जाती है। कुर्बानी का जो यह त्यौहार है। उसका भी यही मतलब है कि वह गोश्त गरीबों में तक्सीम करें ताकि गरीबों को एक वक्त का खाना मिल सके। नमाज अदा करने के बाद वे भेड़ या बकरी की कुर्बानी (बलि) देते हैं। और परिवार के सदस्यों, पड़ोसियों और गरीबों से उसका साझा करते हैं। 

बकरीद की तारीख 2011 से 2030

बकरीद 

साल

दिन

07  नवम्बर  2011 सोमवार
26  अक्टूबर  2012 शुक्रवार
15  अक्टूबर 2013 मंगलवार
05  अक्टूबर 2014 रविवार
24  सितंबर 2015 गुरूवार
13  सितंबर 2016 मंगलवार
02  सितंबर 2017 शनिवार
22  अगस्त 2018 बुधवार
12  अगस्त 2019 सोमवार
31  जुलाई 2020 शुक्रवार
20  जुलाई 2021 मंगलवार
10  जुलाई 2022 रविवार
29  जून 2023 गुरूवार
17  जून 2024 सोमवार
07  जून 2025 शनिवार
27  मई 2026 बुधवार
17  मई 2027 सोमवार
05  मई 2028 शुक्रवार
24  अप्रैल 2029 मंगलवार
14  अप्रैल 2030 रविवार

बकरीद कब हैं?

बकरीद 2022 तारीख

10  जुलाई  रविवार


 


 

 
 

 

Blog Upload on - April 13, 2022

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