भेड़ पालन भी एक पारम्परिक व्यापार है। अर्थात यह एक ऐसा बिजनेस है। जिसे भारत में लोग सदियों से करते आये हैं। भेड़ पालन नामक यह व्यवसाय केवल भारत में ही नहीं अपितु पूरी दुनिया में प्राचीनकाल से होता आ रहा है। वह इसलिए क्योंकि पालतू पशुओं में भेड़ भी शामिल है। और इसके पालन से मनुष्य को न केवल मांस की प्राप्ति होती है। बल्कि ऊन, दूध इत्यादि की भी प्राप्त होती है। इसलिए ग्रामीण भारत में भेड़ पालन को भी एक लाभकारी व्यवसाय के तौर पर देखा जाता है।
भेड़ पालन एक ऐसा व्यवसाय है। जिसे रेगिस्तान, बंजर, पहाड़ों एवं अर्ध शुष्क क्षेत्रों कहीं भी शुरू किया जा सकता है। इसके अलावा इस तरह के बिजनेस को छोटे स्तर पर शुरू करने के लिए बहुत अधिक निवेश की आवश्यकता नहीं होती है। और भेड़ों को पालने के लिए बहुत ज्यादा जगह की भी आवश्यकता नहीं होती है।
यद्यपि ग्रामीण भारत में भेड़ पालन छोटे किसानों द्वारा अन्य पालतू पशुओं जैसे भैंस, गाय, बकरी, इत्यादि के साथ पारम्परिक तरीकों से ही किया जाता है। जबकि व्यवसायिक तौर पर भेड़ पालन व्यापार अत्याधुनिक तकनीक को अपनाकर किया जा सकता है। और यह उद्यमी का कमाई का प्राथमिक स्रोत बन सकता है। दूध प्राप्ति करने के उद्देश्य से भेड़ पालन कम ही किया जाता है कहने का अभिप्राय यह है। की भेड़ पालन करने के पीछे लोगों का प्राथमिक उद्देश्य ऊन एवं मांस की प्राप्ति करना होता है न की दूध की।
इस तरह के कृषि आधारित व्यापार को कोई भी व्यक्ति छोटे एवं बड़े दोनों स्तर पर शुरू कर सकता है यदि उद्यमी के पास निवेश करने को अधिक पैसा नहीं है तो वह छोटे स्तर से भी इस तरह के व्यापार की शुरुआत कर सकता है।
और कुछ समय बाद अच्छे रिटर्न की प्राप्ति कर सकता है। इसलिए भारत में Sheep Farming सीमान्त एवं भूमिहीन किसानों के लिए अच्छी कमाई करने का एक बेहतरीन स्रोत हो सकता है। भारत की जलवायु भी भेड़ पालन के अनुकूल है इसलिए यहाँ भेड़ों की अनेकों नस्लें विद्यमान हैं। भेड़ पालन करने का इच्छुक व्यक्ति किसी भी अच्छी नस्ल का चुनाव अपने बिजनेस के लिए कर सकता है।
भेड़ झुंड में रहना ज्यादा पसंद करती है। इनकी सुनने की तथा किसी भी चीज़ को याद रखने की क्षमता बहुत अधिक होती है। भेड़ एक शाकाहारी जानवर है जो घास तथा पेड़ पौधों की हरी पत्तियों को अपने भोजन के रूप में प्रयोग करती है। सामान्यता भेड़ो के सींग नही होती है परंतु इनकी कुछ प्रजातियों में सींघ पायी जाती है। विश्व मे सबसे अधिक भेड़ो की संख्या चीन में पाई जाती है।
भेड़ पालन के मामले में भारत विश्व मे तीसरे स्थान पर है। सन् 1996 में स्कॉटलैंड में भेड़ का एक क्लोन बनाया गया था जिसका नाम ‘डाली’ रखा गया था। भेड़ एक स्तनपायी जानवर है। भेड़ो की 12-18 महीनों की आयु प्रजनन के लिए सबसे उचित होती है। सामान्यतः भेड़ एक समय मे एक या दो बच्चो को जन्म देती है।
भेड़ो का प्रजनन मौसम के अनुसार ही करना चाहिए क्योंकि अधिक गर्मी और बरसात के मौसम में प्रजनन होने से इनकी मृत्यु दर बहुत अधिक बढ़ जाती है। इनके बच्चे को मेमना कहते है। नर भेड़ो को रामस तथा मादा भेड़ो को एवेस कहा जाता है। भेड़ की औसतन आयु लगभग 7 से 8 वर्ष होती है। परन्तु कुछ अच्छी प्रजाति की भेड़ो का जीवन काल इससे भी अधिक होता है।
भेड़ हमारे लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण जानवर है। भेड़ पालन ग्रामीण क्षेत्र के लोगों की आय का एक प्रमुख साधन भी है। भेड़ पालन करके तथा इनकी अच्छी तरह देखभाल तथा पोषण करके इनसे ऊन, मांस तथा दूध प्राप्त किया जा सकता है। भेड़ का गोबर बहुत अच्छे प्रकार का उर्वरक होता है जिससे खेतों की उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है। भेड़ के दूध में प्रोटीन तथा वसा की अधिक मात्रा पायी जाती है।
हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है। जिसमें की भेड़ पालन, मुर्गी पालन, बकरी पालन, मछली पालन आदि का व्यवसाय आसानी से शुरू कर सकते हैं। इस व्यवसाय को कोई भी व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार छोटे बड़े पैमाने पर शुरू कर सकता है। भेड़ पालन शुरू करने के लिए सबसे पहले आपको एक अच्छी जगह का चुनाव करना चाहिए । जहां पर स्वच्छ पानी, स्वच्छ हवा, हरी घास, बिजली की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए। इस जगह पर वाहन आसानी से आ जा सके भेड़ पालन करने से पहले आपको भेड़ पालन की प्रशिक्षण ले लेनी चाहिए। जिससे कि भेड़ पालन की पूरी जानकारी आप को होनी चाहिए। जिससे कि भेड़ पालन में नुकसान का सामना नहीं करना पड़े और हमें अधिक से अधिक मुनाफा मिल सके।
किसी भी अन्य फसल या मवेशी गतिविधि के समान, यदि आपके पास “भूमि – समय – ऊर्जा” ये तीन चीजें उपलब्ध हैं तो आप अपने स्थान पर अपनी खुद की भेड़ें पालने का आनंद उठा सकते हैं। यदि आपके पास प्रति 12-15 भेड़ों के लिए 1 हेक्टेयर (2.47 एकड़) क्षेत्र वाला खेत है और यदि आपके खेत में वर्ष के 9 महीने उन्हें खिलाने के लिए उनके आहार का कम से कम 70% चारा उगता है तो आप चारे और घास पर आधारित आहार का लाभ उठा सकते हैं और चारों पर काफी ज्यादा पैसे खर्च करने से बच सकते हैं। यदि आपके खेत में पर्याप्त चारा नहीं उगता है तो आपको व्यावसायिक चारे के साथ सूखी घास की एक निश्चित मात्रा प्रदान करने के लिए वित्तीय संसाधनों की जरुरत होगी।
अच्छे और बड़े पैमाने पर करने से, भेड़ पालन उत्साह, बेहतरीन दुग्ध उत्पादों, मांस और ऊन का बड़ा स्रोत हो सकता है। पहले वर्ष में आप हमेशा सीखते हैं और आने वाले वर्षों के लिए बड़े निवेश (समय और पैसे में) के लिए आवश्यक कदम उठा सकते हैं साथ ही साथ आवश्यक अनुमान और गणनाएं कर सकते हैं। 3-4 वर्ष में, यदि आप भेड़ पालन में विशेषज्ञ बन जाते हैं और यदि आपको अपना मांस या दुग्ध उत्पाद मुनाफेदार तरीके से बेचने के लिए कोई बाज़ार मिल जाता है तो आप अपने मवेशियों की संख्या बढ़ाकर इसे अर्ध-पेशेवर तरीके से कर सकते हैं। इसके लिए किसी भी व्यक्ति को प्रतिबद्धता के कौशल की सबसे ज्यादा जरुरत होती है। भेड़ या किसी भी अन्य मवेशी को एक दिन से ज्यादा के लिए अकेला नहीं छोड़ा जा सकता है। पशु पालन का अर्थ है वर्ष के 365 दिन उनकी देखभाल करना, उनका निरीक्षण करना, साफ-सफाई करना, उन्हें खिलाना-पिलाना और समस्याओं का समाधान करना। इसलिए, यदि आप सप्ताहांत के दौरान कहीं जाने की योजना बना रहे हैं तो आपको अपने मवेशियों का ध्यान रखने के लिए किसी अनुभवी और भरोसेमंद व्यक्ति को नियुक्त करना चाहिए।
भेड़ पालन व्यापार के लिए उपयुक्त स्थान का चुनाव करना बेहद ही महत्वपूर्ण कार्य है। यद्यपि भेड़ पालन भारतवर्ष के किसी भी क्षेत्र से शुरू किया जा सकता है। क्योंकि जलवायु के आधार पर सम्पूर्ण भारत में भेड़ पालन आसानी से किया जा सकता है।
लेकिन जब उद्यमी द्वारा अपने इस बिजनेस के लिए उपयुक्त स्थान का चुनाव किया जा रहा हो तो उसे कुछ महत्वपूर्ण व्यवस्था के बारे में अवश्य ध्यान देना चाहिए। भेड़ पालन के लिए स्थान का चयन करते समय इस बात का ध्यान रखें की उस स्थान पर स्वच्छ एवं ताजे पानी की व्यवस्था हो, हरी घास की उपलब्धता हो, चिकित्सा की अच्छी सुविधा हो, ट्रांसपोर्टेशन एवं मार्केटिंग की व्यवस्था हो। इन्हीं सब उपर्युक्त व्यवस्था को ध्यान में रखकर उद्यमी को भेड़ पालन के लिए स्थान का चुनाव करना चाहिए।
भेड़ें घास चरती हैं। उन्हें भूमि की सतह के बिलकुल करीब स्थित छोटे, कोमल घास खाना पसंद होता है। घास से हमारा अर्थ पौधों की प्रजातियों की एक व्यापक श्रृंखला से है, जैसे: घास, दूब, अल्फाल्फा (मेडिकागो सैटिव), कासनी, फलियां, झाड़ियां आदि।
दुनिया भर में भेड़ों की कई नस्लें विद्यमान हैं और इन नस्लों में से कुछ नस्लें ऐसी भी हैं जो भारत में पालने के लिए उपयुक्त हैं। जैसा की हम सबको विदित है की भेड़ पालन व्यापार भेड़ों से उत्पादित उत्पादों जैसे दूध, खाद, खाल, मांस, ऊन इत्यादि पर निर्भर होता है। इसलिए भेड़ पालन कर रहे उद्यमी को हमेशा ही एक ऐसी नस्ल का चुनाव करना चाहिए जिसमें इन उत्पादों को अधिक पैदा करने का सामर्थ्य हो।
भारत के बाजार में भी अनेकों नस्ल के भेड़ उपलब्ध हैं जिनमें से आप अपनी आवश्यकतानुसार भेड़ की नस्ल का चुनाव अपने बिजनेस के लिए कर सकते हैं। अपने क्षेत्र की जलवायु स्थिति के हिसाब से आप किसी भी अच्छी नस्ल का चुनाव कर सकते हैं जिससे आप अच्छी खासी कमाई कर पाने में समर्थ हों। जैसे यदि आप भेड़ पालन मांस उत्पादन के लिए करना चाहते हैं तो आपको किसी ऐसी नस्ल का चुनाव करना होगा जो बड़ी जल्दी बढती हो।
इसके अलावा दूध एवं ऊन का उत्पादन करने के लिए मार्किट में उपलब्ध किसी उपयुक्त नस्ल का चुनाव करें। आज भारत में भेड़ पालन व्यापार शुरू करने वाले उद्यमियों के लिए कई स्थानीय भेड़ों की नस्लें आसानी से उपलब्ध हैं ।
देखा जाए तो भारत में लगभग 50 तरह की नस्लें पाई जाती है। लेकिन इनमें से बस 14 नस्लें ही भेड़ पालन के व्यवसाय के लिए उत्तम मानी जाती हैं. तो चलिए कुछ किस्मों की भेड़ के बारे में विस्तार से जानते हैं।
इस नस्ल की भेड़ के नाम से पता चलता है, कि यह राजस्थान की भेड़ है। लेकिन इस नस्ल की भेड़ गुजरात में अधिक देखी जाती है। व्यापारियों के लिए यह भेड़ बहुत अच्छी है। क्योंकि यह हर 6 महीने में लगभग 650 ग्राम तक ऊन देती है।
मेचेरी नस्ल की भेड़ तमिलनाडु के कोयंबटूर इलाके में अधिक पाई जाती है। इस नस्ल की भेड़ की मांग बाजार में अधिक होती है। क्योंकि इसका मांस बहुत उच्च स्तर का होता है। और उसमें कई तरह के प्रोटीन पाए जाते है। इसलिए इसका मांस बाजार में महंगे दामों पर बिकता है।
यह नस्ल राजस्थान में पाई जाती है। इन भेड़ों के लंबे पैर होते है। और दिखने में ये बहुत ही सुंदर दिखाई देते है। इन भेड़ों से पशुपालकों को 6 महीने में लगभग 500 ग्राम तक ऊन प्राप्त होता है। और सालभर में इनका वजन भी 26 किलो तक पहुंच जाता है।
भेड़ की यह नस्ल भी राजस्थान की है। यह भेड़ बेहतर किस्म के ऊन के लिए उत्तम मानी जाती है। इसी कारण से इस भेड़ को व्यवसाय के लिए लोग अधिक पालते है। सालभर में इसका कुल वजन लगभग 24 किलो तक होता है।
मेचेरी नस्ल की भेड़ तमिलनाडु के कोयंबटूर इलाके में अधिक पाई जाती है। इस नस्ल की भेड़ की मांग बाजार में अधिक होती है। क्योंकि इसका मांस बहुत उच्च स्तर का होता है। और उसमें कई तरह के प्रोटीन पाए जाते है। इसलिए इसका मांस बाजार में महंगे दामों पर बिकता है।
इस नस्ल की भेड़ को व्यापारियों के लिए बहुत ही उत्तम माना जाता है। क्योंकि इसे ऊन और मांस के लिए ही पाला जाती है। यह नस्ल उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर, हरियाणा, दिल्ली और उत्तराखंड में पाई जाती है। इस भेड़ से भी हर 6 महीने में लगभग 600 ग्राम तक ऊन प्राप्त होता है। और यह भेड़ 32 किलो वजन तक होती है।
इस नस्ल की भेड़ पहाड़ी इलाकों में पाई जाती है। इस भेड़ का वजन 17 किलो तक होता है। और यह हर 6 महीने में 450 ग्राम तक ऊन देती है।
यह नस्ले भारत के कई राज्यों में पाई जाती है। और अलग-अलग राज्यों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। जैसे कि सोलापुरी, कोलापुरी, संगामनरी और लोनंद कहा जाता है। इन भेड़ों का रंग काला होता है। यह भेड़ मुख्यता मांस उत्पादन के लिए पाली जाती है।
इस नस्ल की भेड़ को कई नामों से जाना जाता है। जैसे कि कुटची, वधियारी चारोतरी और इसे देसी भेड़ भी कहते है। इस भेड़ से भी आपको हर 6 महीने में लगभग 600 ग्राम तक ऊन प्राप्त होता है।
इस भेड़ का वजन लगभग 3 किलो का होता है। और यह साल भर में 27 किलो तक हो जाती है। यह भेड़ आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले में देखने को मिलती है।
केंद्र सरकार द्वारा बकरी पालन एवं भेंड़ पालन को बढ़ावा देने के लिए नेशनल लाइव स्टॉक मिशन शुरू किया गया है। जिसके तहत देश में पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए भेड़ पालन के लिए सब्सिडी दी जाती है। नेशनल लाइव स्टॉक मिशन के अंतर्गत बहुत से घटक आते हैं। जिसमें अलग-अलग घटक के तहत अलग-अलग सब्सिडी का प्रावधान किया गया है। नेशनल लाइव स्टॉक मिशन के तहत अलग-अलग राज्य सरकार द्वारा सब्सिडी की मात्रा भी अलग अलग होती है। क्योंकि यह केंद्र की योजना है। परंतु कई राज्य सरकारें इसमें राज्य की तरफ से सब्सिडी में कुछ अंश को जोड़ देती है। जिससे किसान को मिलने वाली सब्सिडी बढ़ जाती है।
केंद्र सरकार की नेशनल लाइव स्टॉक मिशन योजना के तहत 40+2 के हिसाब से सब्सिडी दी जाती है। यानि 40 भेड़ पर दो भेड़ा पर कुल खर्चा एक लाख रुपए आता है। इसमें आपको 50 हजार रुपए का लोन बिना ब्याज के मिलता है तथा बाकी 40 प्रतिशत पर आपको ब्याज देना होता है। वहीं 10 प्रतिशत राशि आपको स्वयं लगानी होती है।
यह एक प्रकार का वर्किंग कैपिटल लोन है। जिसका उपयोग बकरी या भेड़ पालन व्यवसाय के लिए किया जा सकता है। किसी भी व्यवसाय की तरह बकरी या भेड़ पालन व्यवसाय को शुरू करने के लिए कुछ राशि की आवश्यकता होती है। वर्किंग कैपिटल की जरूरतों को पूरा करने और कैश फ्लो को बनाए रखने के लिए, ग्राहक विभिन्न निजी और सरकारी बैंकों द्वारा दिए गए बकरी या भेड़ पालन के लिए लोन का विकल्प चुन सकते हैं।
भेड़ या बकरी पालन के लिए बैंक से लोन लेने के लिए आवेदन करते समय आपको कुछ दस्तावेज की आवश्यकता होगी। ये दस्तावेज इस प्रकार से हैं-