बलि प्रथा मानव जाति में वंशानुगत चली आ रही एक सामाजिक प्रथा अर्थात सामाजिक व्यवस्था है। इस पारम्परिक व्यवस्था में मानव जाति द्वारा मानव समेत कई निर्दोष प्राणियों की हत्या यानि कत्ल कर दिया जाता है। विश्व में अनेक धर्म ऐसे हैं, जिनमें इस प्रथा का प्रचलन पाया जाता है। यह मनुष्य जाति द्वारा मात्र स्वार्थसिद्ध की व्यवस्था है। जिसे बलि-प्रथा कहते है।
प्राचीन काल में शास्त्रों के अनुसार मां भगवती ने दुष्टों का अंत करने के लिए विकराल रूप धारण किया था। जिन्हें मां काली के नाम से जाना जाता हैं। काली या महाकाली हिन्दू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं। यह सुन्दरी रूप वाली भगवती पार्वती का काला और भयप्रद रूप है। जिसकी उत्पत्ति असुरों के संहार के लिये हुई थी। उनको विशेषतः बंगाल, ओडिशा और असम में पूजा जाता है। काली को शाक्त परम्परा की दस महाविद्याओं में से एक भी माना जाता है। वैष्णो देवी में दाईं पिंडी माता महाकाली की ही है |
काली की व्युत्पत्ति काल अथवा समय से हुई है। जो सबको अपना ग्रास बना लेती है। माँ का यह रूप है। जो नाश करने वाला है। पर यह रूप सिर्फ उनके लिए हैं। जो दानवीय प्रकृति के हैं। जिनमे कोई दयाभाव नहीं है। यह रूप बुराई से अच्छाई को जीत दिलाने वाला है। अत: माँ काली अच्छे मनुष्यों की शुभेच्छु है। और पूजनीय है। इनको महाकाली भी कहते हैं।
बूंखाल कालिंका मंदिर में भी गोरखा आक्रमण के बाद से ही वर्ष,1805 में यह प्रथा शुरू हुई। करीब 165 साल बाद 70 के दशक में गढ़वाल भर में बलि प्रथा के खिलाफ आवाज उठनी शुरू हुई।
बलि (sacrifice) के दो रूप हैं। वैदिक पंचमहायज्ञ के अंतर्गत जो भूतयज्ञ हैं। वे धर्मशास्त्र में बलि या बलिहरण या भूतबलि शब्द से अभिहित होते हैं। दूसरा पशु आदि का बलिदान है। विश्वदेव कर्म करने के समय जो अन्नभाग अलग रख लिया जाता है। वह प्रथमोक्त बलि है।
बलि प्रथा मुख्यता दो ही कारणों से की जाती हैं। धार्मिक और स्वार्थिक वो चाहे हिंदू धर्म में हो या मुस्लिम धर्म मे ।
देवताओं को प्रसन्न करने के लिए बलि का प्रयोग किया जाता है। बलि प्रथा के अंतर्गत बकरा, मुर्गा या भैंसे की बलि दिए जाने का प्रचलन है। हिन्दू धर्म में खासकर मां काली और काल भैरव को बलि चढ़ाई जाती है। माना जाता हैं। कि इंसान अपनी इच्छा पूर्ति के लिए मां काली को पशुओं की बलि देता है।
इस्लामिक मान्यता के अनुसार ईद-उल-जुहा हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है. ईद-उल-अजहा के मौके पर मुस्लिम धर्म में नमाज पढ़ने के साथ-साथ जानवरों की कुर्बानी भी दी जाती है. इस्लाम के अनुसार, मुस्लिम धर्म के लोग अल्लाह की रजा के लिए कुर्बानी करते है।
विभिन्न देशों, धर्मों तथा समुदायों में बलि प्रथा कई प्रकार की पायी जाती हैं। जैसे :-
प्राचीन काल से ही कहा और सुना जाता है। कि इस दुनियाँ में किसी जमाने में मनुष्यों द्वारा ही निर्दोष मनुष्यों की बलि चढ़ा दी जाती थी। परन्तु इसके प्रमाण अस्पष्ट होते हैं।
भारत में प्राचीन काल से पशुओं की बलि दी जाती आ रही है। मंदिरों में आज भी कहीं ना कहीं निर्दोष पशुओं की बलि दी जाती है। लोगों की यह मान्यता है। की बलि देने से मनुष्यों की इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं। और देवी देवता भी प्रसन्न हो जाते हैं।
बलि प्रथा मानव समाज के लिए बहुत बड़ा कलंक है इस पर रोक लगाना हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। बलि प्रथा को एक सामाजिक व्यवस्था बना दी गई है। जो परंपरागत रूप से चलती आ रही है। निश्चित रूप से यह एक सामाजिक कुरीति ही है। इस पर रोक लगाने के लिए सबसे पहले जनजागरूकता फैलाने की आवश्यकता है। इसके लिए कई तरीके अपनाए जा सकते हैं। जैसे :- नुक्कड़ नाटक आदि।
1. सऊदी अरब, नेपाल, भारत, श्रीलंका, कंबोडिया, चीन, मंगोलिया, बांग्लादेश, भूटान, पाकिस्तान, थाईलैंड आदि।