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दुनिया के 10 सबसे बड़े जानवर

दुनिया के 10 सबसे बड़े जानवर

 

1. खारे पानी का मगरमच्छ (क्रोकोडायलस पोरोसस)

 

खारे पानी के मगरमच्छ जो पहले वियतनाम और दक्षिणी चीन में पाए जाते थे, मानव गतिविधियों के कारण इन क्षेत्रों में विलुप्त हो गए। खारे पानी का मगरमच्छ या एस्टूएराइन क्रोकोडाइल (Estuarine Crocodile) (क्रोकोडिलस पोरोसस) सबसे बड़े आकार का जीवित सरीसृप है। यह उत्तरी ऑस्ट्रेलिया, भारत के पूर्वी तट और दक्षिण-पूर्वी एशिया के उपयुक्त आवास स्थानों में पाया जाता है। खारे पानी के मगरमच्छ की थूथन, मगर कहलाने वाले मगरमच्छ से अधिक लम्बी होती है। आधार पर इसकी लम्बाई चौड़ाई से दोगुनी होती है। अन्य प्रकार के मगरमच्छों की तुलना में खारे पानी के मगरमच्छ की गर्दन पर कवच प्लेटों की संख्या कम होती है। और अधिकांश अन्य पतले शरीर के मगरमच्छों की तुलना में इसके शरीर का चौड़ा होना इस असत्यापित मान्यता को जन्म देता है। की सरीसृप एक एलीगेटर (घड़ियाल) था।

 

एक वयस्क नर खारे पानी के मगरमच्छ का भार 600 से 1,000 किलोग्राम (1,300–2,200 पौंड) और लम्बाई सामान्यतया 4.1 से 5.5 मीटर (13–18 फीट) होती है। हालांकि परिपक्व नर की लम्बाई 6 मीटर (20 फीट) या अधिक और भार 1,300 किलोग्राम (2,900 पौंड) या अधिक भी हो सकता है। किसी अन्य आधुनिक मगरमच्छ प्रजाति की तुलना में, इस प्रजाति में लैंगिक द्विरुपता सबसे अधिक देखने को मिलती है। इनमें मादा नर की तुलना में काफी छोटे आकार की होती है। एक प्रारूपिक मादा के शरीर के लम्बाई 2.1 से 3.5 मीटर (7–11 फीट) की रेंज में होती है। अब तक दर्ज की गयी सबसे बड़े आकार की मादा की लम्बाई लगभग 4.2 मीटर (14 फीट) नापी गयी है। पूरी प्रजाति का औसत भार मोटे तौर पर 450 किलोग्राम (1,000 पौंड) है।

 

खारे पानी के मगरमच्छ का सबसे बड़ा आकार काफी विवाद का विषय है। अब तक थूथन से लेकर पूंछ तक मापी गयी सबसे लम्बे मगरमच्छ की लम्बाई 6.1 मीटर (20 फीट) थी, जो वास्तव में एक मृत मगरमच्छ की त्वचा थी।

 

  • यह मौजूदा जीवित मगरमच्छों की 23 प्रजातियों में सबसे बड़ी प्रजाति है। इसमें 'ट्रू क्रोकोडाइल', मगरमच्छ और कैमन शामिल हैं।
  • इसे 'एश्चुरिन क्रोकोडाइल' भी कहा जाता है और जैसा कि नाम से पता चलता है, यह आमतौर पर एश्चुरी के खारे पानी में पाया जाता है।
  • यह महासागरों में खारे पानी को भी सहन कर सकता है। और ज्वारीय धाराओं का उपयोग करके खुले समुद्र में लंबी दूरी की यात्रा कर सकता है।
  • यह मगरमच्छ ओडिशा के भितरनिका राष्ट्रीय उद्यान, पश्चिम बंगाल में सुंदरवन तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में पाया जाता है।
  • यह भारतीय उपमहाद्वीप के तीन मगरमच्छों साथ ही घड़ियाल मगरमच्छ (Crocodylus palustris) और घड़ियाल (Gavialis Gangeticus) मगरमच्छों में से एक है।
  • यह बांग्लादेश, मलेशिया, इंडोनेशिया, ब्रुनेई, फिलीपींस, पापुआ न्यू गिनी, ऑस्ट्रेलिया और सोलोमन द्वीप समूह में भी पाया जाता है।
  • प्रजातियों की सीमा पश्चिम में सेशेल्स और केरल, भारत से लेकर पूर्व में दक्षिणपूर्वी चीन, पलाऊ और वानुअतु तक फैली हुई थी।

 

 

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2. ब्लू व्हेल (बालेनोप्टेरा मस्कुलस)

 

ब्लू व्हेल (बलैनोप्टेरा मस्कुलस) एक समुद्री स्तनपायी जीव है। इसकी लंबाई 30 मीटर (98 फीट) तक देखी गई है।  इसका वजन 173 टन (191 लघु टन) तक दर्ज किया गया है। यह वर्तमान अस्तित्व में रहने वाले जानवरों में सबसे बड़ा जानवर है।

 

इसका शरीर लंबा और पतला होता है। इसके शरीर पर नीले रंग के साथ साथ विभिन्न रंगों का भी प्रभाव दिखाई देता है। यह कम से कम तीन अलग-अलग उप-प्रजाति में पाया जाता है। बी. एम. मस्कुलस जो उत्तर अटलांटिक महासागर और उत्तरी प्रशांत में, बी. एम. इंटरमीडिया दक्षिणी सागर में और बी. एम. ब्रेविकौडा (जो बौना नीला व्हेल रूप में भी जाना ) हिंद महासागर और दक्षिण प्रशांत महासागर में पाया जाता है। बी. एम. इंडिका, हिंद महासागर में पाया जा सकता है। जो एक और उप प्रजाति है। इसी के साथ एक और व्हेल है। जो छोटे क्रसटेशियन के रूप में क्रिल्ल के नाम से जाना जाता है। 

 

बीसवीं सदी की शुरुआत में ब्लू व्हेल पृथ्वी के लगभग सभी महासागरों पर प्रचुर मात्रा में थे। लगभग एक सदी तक लगातार इनका शिकार होने के कारण लगभग विलुप्त होना के कगार तक पहुँच गए। इन्हें संरक्षित रखने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय की स्थापना 1966 में की गई। 2002 के अनुमान के अनुसार दुनिया भर में 5,000 से 12,000 तक ही व्हेल बचे हैं। जो पाँच समूहों में बटे हुए हैं। आईयूसीएन का अनुमान है कि आज इनकी संख्या शायद 10,000 से 25,000 के बीच है। इनके शिकार से पहले सबसे बड़ी आबादी अंटार्कटिक में थी। जो लगभग 2,39,000 के आसपास थी (2,02,000 से 3,11,000 तक) इसके अलावा बहुत कम तादाद (लगभग 2,000) पूर्वी उत्तरी प्रशांत अंटार्कटिक और हिंद महासागर में थी। दो समूह उत्तर अटलांटिक और कम से कम दो दक्षिणी गोलार्द्ध में था। 2014 में, कैलिफोर्निया के ब्लू व्हेल की आबादी में तेजी दर्ज की गई और यह लगभग अपने शिकार से पूर्व की आबादी तक पहुँच गई।

 

 

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3. छिपकली: कोमोडो ड्रैगन ( वरानस कोमोडोएन्सिस )

 

कोमोडो ड्रैगन (Komodo Dragon) एक बेहद विचित्र जीव है। जो कि छिपकली का ही बड़ा रूप है। कोमोडो ड्रैगन दिखने में बेहद बेहूदा और बदबूदार जीव है। यह प्रजाति डायनासोर के परिवार से तालुकात रखती है। अर्थात यह डायनासोर के समय से ही चली आ रही है।



जी हां दोस्तों आज का हमारा लेख इसी खतरनाक जीव से सम्बंधित है। जिसे हम कोमोडो ड्रैगन के नाम से जानते है। आज हम आपको इसी जीव से जुड़े बेहद रोचक व् दिलचस्प तथ्य बताने जा रहे हैं। दुनिया की सबसे बड़ी छिपकली का नाम जहन में आता है तो कोमोडो ड्रैगन ही हमारी नजरों के सामने आता है. क्योंकि यही छिपकली विश्व में सबसे बड़ी छिपकली मानी जाती है जो इंसानो का शिकार तक कर सकती है। 

 

कोमोडो ड्रैगन का वजन लगभग 100 किलो या इस से भी ज्यादा हो सकता है। और इसकी लंबाई 10 फीट से लेकर 15 फ़ीट तक होती है। जिस तरह सांप अपनी केंचुल (केचली) उतारते हैं। ठीक उसी प्रकार छिपकली का शरीर भी उसकी बाहरी त्वचा के मुकाबले काफी तेजी से बढ़ता है। यही वजह होती है कि छिपकली समय समय पर अपनी त्वचा उतारती रहती है। कोमोडो ड्रैगन मांसाहारी जीवो की श्रेणी में आने वाली छिपकली है। और इसका जीवनकाल लगभग 30 साल तक होता है।  आपको जानकर हैरानी होगी यह छिपकली हिरण, भैंस, बारासिंगा, इंसानो तक का शिकार कर सकती है। उदाहरण के तौर पर 2009 में एक व्यक्ति जंगल में इन छिपकलियों को देखने के लिए एक पेड़ पर चढ़ गया था। परंतु अचानक उसका पैर फिसलने से वह इन छिपकलियों के आगे गिर गया और इन छिपकलियों न उस व्यक्ति को अपना भोजन बना लिया था। अब यह प्रजाति विलुप्ति की कगार पर पहुंच गयी है। क्युकी हाल ही के कुछ सालो में कोमोडो ड्रैगन के अवैध कारोबार के लिए इस जीव का शिकार किया जा रहा है। कोमोडो ड्रैगन दिखने में बेहद डरावनी लगती है। इसकी मोटी त्वचा, बड़े-बड़े पंजे, पीले रंग की जीभ व् जहरीली लार इन्हें और भी डरावना बनाती है। क्या आप जानते हैं इंडोनेशिया के पास समुंदर में एक ऐसा द्वीप है। जहां सिर्फ कोमोडो ड्रैगन ही रहते हैं। और इसी कारण इस द्वीप को कोमोडो द्वीप कहा जाता है। यहां पर रहने वाले कोमोडो ड्रैगन कि संख्या हजारो में है। 

 

कोमोडो ड्रेगन का इतिहास

 

कोमोडो ड्रेगन को पहली बार 1910 में यूरोपीय लोगों द्वारा प्रलेखित किया गया था। जब एक "भूमि मगरमच्छ" की अफवाहें डच औपनिवेशिक प्रशासन के लेफ्टिनेंट वैन स्टेन वैन हेन्सब्रोक तक पहुंचीं। १९१२ के बाद व्यापक रूप से बदनामी हुई, जब बोगोर, जावा में जूलॉजिकल संग्रहालय के निदेशक पीटर ओवेन्स ने लेफ्टिनेंट से एक तस्वीर और एक त्वचा प्राप्त करने के बाद इस विषय पर एक पेपर प्रकाशित किया साथ ही एक कलेक्टर से दो अन्य नमूने भी प्रकाशित किए।

 

यूरोप में आने वाले पहले दो जीवित कोमोडो ड्रेगन को 1927 में लंदन चिड़ियाघर के रेप्टाइल हाउस में प्रदर्शित किया गया था। जोन ब्यूचैम्प प्रॉक्टर ने कैद में इन जानवरों के कुछ शुरुआती अवलोकन किए और उन्होंने एक वैज्ञानिक में उनके व्यवहार का प्रदर्शन किया। 1928 में जूलॉजिकल सोसायटी ऑफ लंदन की बैठक।

 

1926 में डब्ल्यू डगलस बर्डन द्वारा कोमोडो द्वीप के लिए एक अभियान के लिए कोमोडो ड्रैगन ड्राइविंग कारक था। 12 संरक्षित नमूनों और दो जीवित लोगों के साथ लौटने के बाद, इस अभियान ने 1933 की फिल्म किंग कांग के लिए प्रेरणा प्रदान की । यह बर्डन भी था जिसने सामान्य नाम "कोमोडो ड्रैगन" गढ़ा था। उनके तीन नमूने भरे हुए थे। और अभी भी अमेरिकी प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय में प्रदर्शित हैं।

 

डच द्वीप प्रशासन, जंगली में सीमित संख्या में व्यक्तियों को महसूस करते हुए, जल्द ही खेल शिकार को अवैध कर दिया और वैज्ञानिक अध्ययन के लिए व्यक्तियों की संख्या को बहुत सीमित कर दिया। जब अध्ययनों ने कोमोडो ड्रैगन के खिला व्यवहार, प्रजनन और शरीर के तापमान की जांच की। इस समय के आसपास, एक अभियान की योजना बनाई गई थी। जिसमें कोमोडो ड्रैगन का दीर्घकालिक अध्ययन किया जाएगा। यह कार्य औफ़ेनबर्ग परिवार को दिया गया था, जो 1969 में 11 महीने के लिए कोमोडो द्वीप पर रहा था। अपने प्रवास के दौरान, वाल्टर औफ़ेनबर्ग और उनके सहायक पुत्र शास्त्रवान ने 50 से अधिक कोमोडो ड्रेगन को पकड़ लिया और टैग किया। ऑफ़ेनबर्ग अभियान से अनुसंधान कैद में कोमोडो ड्रेगन को बढ़ाने में काफी प्रभावशाली साबित हुआ। ऑफ़ेनबर्ग परिवार के बाद के शोध ने कोमोडो ड्रैगन की प्रकृति पर अधिक प्रकाश डाला है।

 

 

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 4. शुतुरमुर्ग (स्ट्रुथियो कैमलस)

 

 

पृथ्वी पर सबसे बड़ा पक्षी शुतुरमुर्ग है। उड़ने के लिए बहुत बड़ा और भारी, यह पक्षी लंबी दूरी तक 43 मील प्रति घंटे (70 किमी/घंटा) की गति से दौड़ने में सक्षम है। नर 9 फीट लंबा (2.8 मीटर) से अधिक हो सकते हैं और 346 पाउंड (156.8 किलोग्राम) तक वजन कर सकते हैं। जितना कि दो लोग। मादा आमतौर पर छोटी होती हैं। और शायद ही कभी 6 फुट 7 इंच (2 मीटर) से अधिक ऊंचाई तक बढ़ती हैं। शुतुरमुर्ग पहले मध्य पूर्व और अब अफ्रीका का निवासी एक बड़ा उड़ान रहित पक्षी है। यह स्ट्रुथिओनिडि (en:Struthionidae) कुल की एकमात्र जीवित प्रजाति है। इसका वंश स्ट्रुथिओ (en:Struthio) है। शुतुरमुर्ग के गण, स्ट्रुथिओफॉर्म के अन्य सदस्य एमु, कीवी आदि हैं। 

 

इसकी गर्दन और पैर लंबे होते हैं और आवश्यकता पड़ने पर यह ७० कि॰मी॰/घंटा की अधिकतम गति से भाग सकता है। जो इस पृथ्वी पर पाये जाने वाले किसी भी अन्य पक्षी से अधिक है। शुतुरमुर्ग पक्षिओं की सबसे बड़ी जीवित प्रजातियों मे से है। और यह किसी भी अन्य जीवित पक्षी प्रजाति की तुलना में सबसे बड़े अंडे देता है।
प्रायः शुतुरमुर्ग शाकाहारी होता है। लेकिन उसके आहार में अकशेरुकी भी शामिल होते हैं। यह खानाबदोश गुटों में रहता है। जिसकी संख्या पाँच से पचास तक हो सकती है। संकट की अवस्था में या तो यह ज़मीन से सट कर अपने को छुपाने की कोशिश करता है। या फिर भाग खड़ा होता है। फँस जाने पर यह अपने पैरों से घातक लात मार सकता है। संसर्ग के तरीक़े भौगोलिक इलाकों के मुताबिक भिन्न होते हैं। लेकिन क्षेत्रीय नर के हरम में दो से सात मादाएँ होती हैं। जिनके लिए वह झगड़ा भी करते हैं। आमतौर पर यह लड़ाइयाँ कुछ मिनट की ही होती हैं। लेकिन सर की मार की वजह से इनमें विपक्षी की मौत भी हो सकती है।
आज दुनिया भर में शुतुरमुर्ग व्यावसायिक रूप से पाले जा रहे हैं। मुख्यतः उनके पंखों के लिए, जिनका इस्तेमाल सजावट तथा झाड़ू बनाने के लिए किया जाता है। इसकी चमड़ी चर्म उत्पाद तथा इसका मांस व्यावसायिक तौर से इस्तेमाल में लाया जाता है।

 

दक्षिण अफ्रीका ऐसा पहला देश था। जिसने शुतुरमुर्ग उत्पादों की व्यावसायिक क्षमता को देखा। इस जीव को न केवल उनके बड़े नरम सफेद पंखों और उनके मांस के लिए बल्कि उनकी खाल के लिए भी मूल्यवान माना जाता है। जो दुनिया में सबसे मजबूत व्यावसायिक रूप से उपलब्ध चमड़े में बने हैं। माना जाता है कि शुतुरमुर्ग का उत्पादन करू और पूर्वी केप (Cape) में 1863 में शुरू हुआ था। 1910 तक देश में 20,000 से भी अधिक पालतू शुतुरमुर्ग थे। और 1913 तक इनके पंख दक्षिण अफ्रीका के उन चार उत्पादों में शामिल हो गए थे। जो निर्यात की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण थे। इसके तुरंत बाद इनकी मांग कम होने लगी, लेकिन 1920 के दशक में शुतुरमुर्ग का फिर से उद्धार हुआ। जब किसानों ने व्यावसायिक रूप से बिल्टोंग (Biltong - शुतुरमुर्ग के मांस की सूखी पट्टियाँ) का उत्पादन शुरू किया। शुतुरमुर्ग फैशन की दुनिया में भी लोकप्रिय हैं। 18 वीं शताब्दी में, महिलाओं के फैशन में शुतुरमुर्ग के पंख इतने लोकप्रिय थे, कि वे पूरे उत्तरी अफ्रीका से गायब हो गए थे। अगर 1838 में शुतुरमुर्ग का उत्पादन नहीं किया जाता तो शायद दुनिया का सबसे बड़ा पक्षी विलुप्त हो जाता। आज, शुतुरमुर्ग का उत्पादन और इनका शिकार उनके पंखों, त्वचा, मांस, अंडे और वसा के लिए किया जाता है। सोमालिया (Somalia) में यह माना जाता है। कि इनसे प्राप्त वसा एड्स और मधुमेह को ठीक करने में उपयोगी है।

 

आज दुनिया भर में शुतुरमुर्ग व्यावसायिक रूप से पाले जा रहे हैं। मुख्यतः उनके पंखों के लिए, जिनका इस्तेमाल सजावट तथा झाड़ू बनाने के लिए किया जाता है। इसकी चमड़ी चर्म उत्पाद तथा इसका मांस व्यावसायिक तौर से इस्तेमाल में लाया जाता है।

 

 

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5. जापानी स्पाइडर क्रैब (मैक्रोचेइरा केम्फेरी)

 

जापानी स्पाइडर क्रैब (मैक्रोचेइरा केम्फेरी) समुद्री केकड़े की एक प्रजाति है। जो जापान के आसपास के पानी में रहता है। यह किसी भी आर्थ्रोपॉड का सबसे बड़ा ज्ञात लेग-स्पैन है। यह अपने बड़े आकार तक बढ़ने के लिए एक प्रीज़ोअल चरण के साथ तीन मुख्य लार्वा चरणों से गुज़रता है। जीनस Macrocheira में कई प्रजातियां शामिल हैं। इस जीनस की दो जीवाश्म प्रजातियां पाई गई हैं। एम. जिनजेनेंसिस और एम. याबेई, दोनों जापान के मियोसीन से हैं। इसका विविध टैक्सोनोमिक इतिहास इन प्राणियों के बारे में एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। और वे कैसे विकसित हुए हैं कि वे आज क्या हैं। वे केकड़ा मत्स्य पालन द्वारा मांगे जाते हैं। और जापान में एक विनम्रता माना जाता है। संरक्षण के प्रयासों का उद्देश्य इन जीवों और उनकी आबादी को अत्यधिक मछली पकड़ने से बचाना है। जापानी मकड़ी का केकड़ा बहुत छोटे यूरोपीय मकड़ी केकड़े (माजा स्क्विनाडो) के समान है। हालांकि बाद वाला, जबकि एक ही सुपरफैमिली के भीतर, एक अलग परिवार, माजिदे से संबंधित है। जापानी स्पाइडर क्रैब के पास किसी भी ज्ञात आर्थ्रोपोड की तुलना में सबसे बड़ा लेग स्पैन है। जो पंजे से पंजे तक 3.7 मीटर (12.1 फीट) तक पहुंचता है।  कैरपेस चौड़ाई में शरीर 40 सेमी (16 इंच) तक बढ़ सकता है। और पूरे केकड़े का वजन 19 किलोग्राम (42 पाउंड) तक हो सकता है। सभी जीवित आर्थ्रोपोड प्रजातियों के बीच केवल अमेरिकी लॉबस्टर के लिए द्रव्यमान में दूसरा। नर में लंबे चेलिपेड होते हैं। मादाओं के पास बहुत छोटे चेलिपेड होते हैं। जो पैरों की निम्नलिखित जोड़ी से छोटे होते हैं। अपने उत्कृष्ट आकार के अलावा, जापानी मकड़ी का केकड़ा अन्य केकड़ों से कई मायनों में अलग है।

 

पुरुषों के पहले प्लीपोड असामान्य रूप से मुड़े हुए होते हैं। और लार्वा आदिम दिखाई देते हैं। केकड़ा नारंगी रंग का होता है। जिसके पैरों पर सफेद धब्बे होते हैं। बताया जाता है कि इसके क्रूर रूप के बावजूद इसका कोमल स्वभाव है। इस प्रजाति का जापानी नाम टका-आशी-गनी है। शाब्दिक रूप से "लंबे पैरों वाले केकड़े" का अनुवाद। इसमें लगभग 100 मिनट तक पिघलने का एक अनूठा व्यवहार भी होता है। जिसमें केकड़ा अपनी गतिशीलता खो देता है। और अपने कैरपेस को पीछे की ओर पिघलाना शुरू कर देता है। और अपने चलने वाले पैरों को पिघलाने के साथ समाप्त होता है। इसका बख़्तरबंद एक्सोस्केलेटन इसे ऑक्टोपस जैसे बड़े शिकारियों से बचाने में मदद करता है। लेकिन छलावरण का भी उपयोग करता है। केकड़े की ऊबड़-खाबड़ खोल चट्टानी समुद्र तल में विलीन हो जाती है। धोखे को आगे बढ़ाने के लिए, एक मकड़ी का केकड़ा अपने खोल को स्पंज और अन्य जानवरों से सजाता है।

 

जापानी मकड़ी के केकड़े ज्यादातर टोक्यो खाड़ी से कागोशिमा प्रान्त तक होन्शु के जापानी द्वीप के दक्षिणी तटों पर पाए जाते हैं। ताइवान में इवाते प्रान्त और सु-आओ में बाहरी आबादी पाई गई है। वयस्क 50 और 600 मीटर (160 और 1,970 फीट) के बीच की गहराई में पाए जाते हैं। वे समुद्र के गहरे हिस्सों में झरोखों और छिद्रों में रहना पसंद करते हैं।

 

 

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6. अफ्रीकन वन हाथी

 

अफ्रीकन वन हाथी अफ्रीकी महाद्वीप पर हाथियों की दो उप-प्रजातियों में से एक है। कुछ समय पहले तक, वैज्ञानिक सोचते थे कि वे एक ही प्रजाति के हैं। लेकिन आगे के अध्ययन ने वारंट उप-प्रजाति की स्थिति के लिए पर्याप्त भिन्नता प्रकट की। अफ्रीकी वन हाथी अफ्रीकी बुश हाथियों की तुलना में थोड़े छोटे होते हैं। लेकिन वे आज भी भूमि पर सबसे बड़े जानवरों में से एक हैं। हालांकि दोनों प्रजातियां बहुत समान हैं। अफ्रीकी जंगली हाथी के अफ्रीकी बुश हाथी की तुलना में गोल कान, सीधे दांत और पैर के नाखून अधिक होते हैं।

 

अफ्रीकन वन हाथी शरीर रचना और रूप

 

अफ्रीकी वन हाथी पृथ्वी पर सबसे बड़े ज्ञात स्थलीय स्तनधारियों में से एक है, जिसमें नर अफ्रीकी वन हाथी लगभग 3 मीटर ऊंचाई तक और मादा अफ्रीकी वन हाथी लगभग 2.5 मीटर तक पहुंचते हैं। एक अफ्रीकी वन हाथी के दांत लगभग 1.5 मीटर लंबे हो सकते हैं। और आमतौर पर इसका वजन 50 से 100 पाउंड के बीच होता है। जो एक छोटे वयस्क मानव के बराबर होता है। वे अफ्रीकी बुश हाथी के दाँतों की तुलना में पतले, सीधे और छोटे हैं। अफ्रीकी वन हाथियों के चार दाढ़ वाले दांत होते हैं। जिनमें से प्रत्येक का वजन लगभग 5.0 किलोग्राम और माप लगभग 12 इंच लंबा होता है। इनके बड़े गोल कान होते हैं। जिनका उपयोग सुनने और उन्हें ठंडा रखने दोनों के लिए किया जाता है।

 

आदतें और जीवन शैली

 

अफ्रीकी वन हाथी सामाजिक प्राणी हैं। उनके समूहों में 2-8 व्यक्ति होते हैं। और आमतौर पर अन्य हाथियों की तुलना में छोटे होते हैं। इस बीच, परिवार इकाइयों में औसतन 3-5 हाथी होते हैं। इन शाकाहारी जानवरों के आहार में मुख्य रूप से वनस्पति जैसे घास, पत्ते, छाल और फल होते हैं। जो अक्सर महिला रिश्तेदार होती है। एक मादा अपनी संतान या कई मादाओं और उनकी संतानों के साथ। परिपक्वता तक पहुंचने पर, नर बछड़े समूह छोड़ देते हैं। जबकि मादा परोपकारी होती हैं। अपने परिवार समूह में शेष रहती हैं। अफ्रीकी सवाना हाथी के विपरीत इस प्रजाति के समूह एक-दूसरे से बचते हैं। नर आकार-आधारित प्रभुत्व पदानुक्रम के तहत रहते हैं। वे अकेले रहते हैं। और संभोग के दौरान ही सामाजिककरण करते हैं। इन हाथियों में संचार का सबसे सामान्य रूप कम कॉल है। इन स्वरों को कई किलोमीटर घने जंगल के माध्यम से षड्यंत्रकारियों द्वारा माना जाता है। हालाँकि, वे मानव कानों द्वारा सुने जाने के लिए बहुत कम हैं। इन शाकाहारी जानवरों के आहार में मुख्य रूप से वनस्पति जैसे घास, पत्ते, छाल और फल होते हैं।

 

संचार

 

चूंकि यह प्रजाति नई मान्यता प्राप्त है। संचार और धारणा पर बहुत कम या कोई साहित्य उपलब्ध नहीं है। इन स्तनधारियों के लिए, सुनना और सूंघना उनके पास सबसे महत्वपूर्ण इंद्रियां हैं। क्योंकि उनकी दृष्टि अच्छी नहीं होती है। वे जमीन के माध्यम से कंपन को पहचान और सुन सकते हैं और अपनी सूंघने की क्षमता से खाद्य स्रोतों का पता लगा सकते हैं। हाथी भी एक लयबद्ध प्रजाति हैं, जिसका अर्थ है कि उनके पास कम रोशनी में ठीक उसी तरह देखने की क्षमता है जैसे वे दिन के उजाले में देख सकते हैं। वे ऐसा करने में सक्षम हैं क्योंकि उनकी आंखों में रेटिना लगभग उतनी ही तेजी से समायोजित होता है जितनी जल्दी प्रकाश करता है। हाथी के पैर संवेदनशील होते हैं और जमीन के माध्यम से कंपन का पता लगा सकते हैं, चाहे गड़गड़ाहट हो या हाथी कॉल, 10 मील दूर तक।

 

अफ्रीकन वन हाथी के लक्षण

 

अफ्रीकी की धूसर त्वचा होती है। जो चारदीवारी के बाद पीले से लाल रंग की हो जाती है। पूंछ की लंबाई व्यक्तियों के बीच दुम की आधी ऊंचाई से लेकर लगभग जमीन को छूने तक भिन्न होती है। इसके पैर के अगले पैर में पांच और पिछले पैर में चार नाखून होते हैं। इसके कान छोटे अण्डाकार आकार के सुझावों के साथ अंडाकार आकार के होते हैं। इसके कान शरीर की गर्मी को कम करने में मदद करते हैं। जब उन्हें फड़फड़ाया जाता है। तो यह हवा की धाराएं बनाता है। और कानों को अंदर की तरफ उजागर करता है। इसकी पीठ लगभग सीधी होती है। इसके दाँत सीधे और नीचे की ओर नुकीले होते हैं।

 

एक अफ्रीकी वन हाथी की सूंड उसके ऊपरी होंठ और नाक का प्रीहेंसाइल बढ़ाव है। मांसल प्रकृति के कारण ट्रंक इतना मजबूत होता है कि वह अपने शरीर के वजन का लगभग 3% उठा सकता है। दाँत सीधे और नीचे की ओर नुकीले होते हैं। नर और मादा दोनों अफ्रीकी वन हाथियों के दाँत होते हैं। जो पर्णपाती दांतों से बढ़ते हैं। जिन्हें टश कहा जाता है। बछड़ों के लगभग एक वर्ष तक पहुंचने पर उन्हें तुस्क द्वारा बदल दिया जाता है।

 

 

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7. अर्जेंटीनासॉरस (डायनासोर)

 

"डायनासोर" शब्द को 1842 में सर रिचर्ड ओवेन ने गढ़ा था और इसके लिए उन्होंने ग्रीक शब्द (डीनोस) "भयानक, शक्तिशाली, चमत्कारिक (सॉरॉस) "छिपकली" को प्रयोग किया था। बीसवीं सदी के मध्य तक, वैज्ञानिक समुदाय डायनासोर को एक आलसी, नासमझ और शीत रक्त वाला प्राणी मानते थे। लेकिन 1970 के दशक के बाद हुये अधिकांश अनुसंधान ने इस बात का समर्थन किया है कि यह ऊँची उपापचय दर वाले सक्रिय प्राणी थे।

 

उन्नीसवीं सदी में पहला डायनासोर जीवाश्म मिलने के बाद से डायनासोर के टंगे कंकाल दुनिया भर के संग्रहालयों में प्रमुख आकर्षण बन गए हैं। अर्जेंटीना दक्षिण अमेरिका का दूसरा सबसे बडा देश हैं। जहां डायनासोर के जीवाश्म भारी मात्रा में पाए गए हैं। आज ये दुनियाभर में संस्कृति का एक हिस्सा बन गये हैं। और लगातार इनकी लोकप्रियता बढ़ रही है। दुनिया की कुछ सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबें डायनासोर पर आधारित हैं। साथ ही जुरासिक पार्क जैसी फिल्मों ने इन्हें पूरे विश्व में लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 

 

जब 1987 में अर्जेंटीना में इसकी खोज की गई, तो दुनिया के सबसे बड़े डायनासोर, अर्जेंटीनासॉरस ने जीवाश्म विज्ञान की दुनिया को इसकी नींव तक हिला दिया। इसकी खोज के बाद से, जीवाश्म विज्ञानियों ने अर्जेंटीनासॉरस की लंबाई और वजन के बारे में तर्क दिया है। कुछ पुनर्निर्माणों ने इस डायनासोर को सिर से पूंछ तक 75 से 85 फीट और 75 टन तक रखा है। जबकि अन्य कम संयमित है। 100 फीट की कुल लंबाई और 100 टन वजन का अनुमान लगाते हैं। यदि बाद के अनुमानों का पालन होता है। तो यह अच्छी तरह से प्रमाणित जीवाश्म सबूतों के आधार पर अर्जेण्टीनोसारस को रिकॉर्ड पर सबसे बड़ा डायनासोर बना देगा। 

 

इसके विशाल आकार को देखते हुए, यह उचित है कि अर्जेंटीनासॉरस को टाइटेनोसॉरस के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जो हल्के-बख़्तरबंद सॉरोपोड्स का परिवार है जो बाद में क्रेटेशियस काल में पृथ्वी पर हर महाद्वीप में फैल गया। ऐसा लगता है कि यह डायनासोर का निकटतम टाइटेनोसॉर रिश्तेदार बहुत छोटा साल्टसॉरस रहा है, जो मात्र 10 टन में घूम रहा है और कुछ मिलियन साल बाद जीवित है। अर्जेंटीनासॉरस के बिखरे हुए अवशेष 10-टन मांसाहारी गिगनोटोसॉरस से जुड़े हुए हैं। जिसका अर्थ है कि ये दो डायनासोर मध्य क्रेटेशियस दक्षिण अमेरिका में एक ही क्षेत्र साझा करते हैं। हालांकि कोई रास्ता नहीं है कि एक बेहद भूखा गिगनोटोसॉरस अपने आप में एक पूर्ण विकसित अर्जेंटीनासॉरस को नीचे ले जा सकता है। यह संभव है कि ये बड़े थेरोपोड पैक्स में शिकार करते है। इस प्रकार बाधाओं को समतल करते हैं।

 

डायनासोर पशुओं के विविध समूह थे। जीवाश्म विज्ञानियों ने डायनासोर के अब तक 500 विभिन्न वंशों और 1000 से अधिक प्रजातियों की पहचान की है और इनके अवशेष पृथ्वी के हर महाद्वीप पर पाये जाते हैं। कुछ डायनासोर शाकाहारी तो कुछ मांसाहारी थे। कुछ द्विपाद तथा कुछ चौपाये थे, जबकि कुछ आवश्यकता अनुसार द्विपाद या चतुर्पाद के रूप में अपने शरीर की मुद्रा को परिवर्तित कर सकते थे। कई प्रजातियां की कंकालीय संरचना विभिन्न संशोधनों के साथ विकसित हुई थी, जिनमे अस्थीय कवच, सींग या कलगी शामिल हैं। हालांकि डायनासोरों को आम तौर पर उनके बड़े आकार के लिए जाना जाता है, लेकिन कुछ डायनासोर प्रजातियों का आकार मानव के बराबर तो कुछ मानव से छोटे थे। डायनासोर के कुछ सबसे प्रमुख समूह अंडे देने के लिए घोंसले का निर्माण करते थे और आधुनिक पक्षियों के समान अण्डज थे।

 

 

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8. पूर्वी गोरिल्ला

 

शब्द "गोरिल्ला" हनो द नेविगेटर के इतिहास (एक कार्थेजियन खोजकर्ता, जो पश्चिमी अफ्रीकी तट पर एक अभियान पर थे। और जो बाद में सिएरा लियोन के नाम से जाने गये।) से आता है। गोरिल्ला शब्द का प्रयोग 500 ईं पूर्व पश्चिमी अफ्रिका के अंदर सिएरा लियोन ने किया था। उसके अभियान के सदस्यों पर काले बालों वाले एक समूह ने हमला किया था, (जिसमें ज्यादातर महिलाए थी) ने आक्रमण कर दिया था। इस समूह को उसने गोरिल्ला कहा था। गोरिल्ला के निकटतम रिश्तेदार होमिनिना जेनेरा, चिम्पांजी और इंसान हैं। जोकि 7 मिलियन वर्ष पूर्व इनसे अलग हो गए थे। पहले गोरिल्ला एक जाति माना जाता था। जिसके अंदर तीन उपजातियां थी। पश्चिमी लोलैंड गोरिल्ला, पूर्वी निचला भूमि गोरिल्ला और पर्वत या माउंटेन गोरिल्ला। लेकिन अब ‌‌‌गोरिल्ला को दो जातियों के अंदर विभाजित किया गया है। ‌‌हिमयुग के दौरान गोरिल्ला की अनेक प्रजातियां विकसित हुई। लेकिन अब उनमें से अधिकतर नष्ट हो चुकी हैं।

 

गोरिल्ला के निकटतम रिश्तेदार  होमिनिना जेनेरा, चिम्पांजी और इंसान हैं। जोकि 7 मिलियन वर्ष पूर्व इनसे अलग हो गए थे। पहले गोरिल्ला एक जाति माना जाता था। जिसके अंदर तीन उपजातियां थी। पश्चिमी लोलैंड गोरिला, पूर्वी निचला भूमि गोरिला और पर्वत गोरिला लेकिन अब ‌‌‌गोरिल्ला को दो जातियों के अंदर विभाजित किया गया है।‌‌‌ हिमयुग के दौरान गोरिल्ला की अनेक प्रजातियां विकसित हुई । लेकिन अब वे नष्ट हो चुकी हैं।

 

गोरिल्ला का घोसला : गोरिल्ला घोसला भी बनाते हैं। वे पतों को एकत्रित कर घोसला बनाते हैं। और इसके लिए वे शाखाओं की मदद लेते हैं। लेंकिन गोरिल्ला के छोटे बच्चे जमीन पर ही सोते हैं। और जब वे कुछ बड़े हो जाते हैं तो घोसलों के अंदर रहने लग जाते हैं। 

 

गोरिल्ला के फूड : गोरिल्ला शायद ही पानी पीता है। वे पानी की पूर्ति फलों के माध्यम से करते हैं। लेकिन कई जगह पर गोरिल्ला को पानी पीते हुए भी देखा गया है। माउंटेन गोरिल्ला ज्यादातर पत्ते, उपजी, पिथ, आदि खाते हैं। वे फलों को आहार के रूप मे भी खाते हैं। र्वी लोलैंड गोरिल्ला पतियां खाते हैं। और 25 प्रतिशत फल भी खा लेते हैं। ‌‌‌यह कीड़ों को भी खा लेता है।

 

गोरिल्ला प्राणी की जानकारी 

 

गोरिल्ला (Gorilla) आपस में चेहरे के हावभाव को पढ़कर बात करते है। ये हाथों के इशारों को भी समझते है। गोरिल्ला का स्वभाव शांत होता है लेकिन इनके समूह पर आक्रमण होने पर यह अशांत हो जाता है। इस समय गोरिल्ला हानि भी पहुंचा सकता है। गोरिल्ला होशियार जानवर है, यह औजार का उपयोग करना भी जानता है। गोरिल्ला सीखता भी बहुत जल्दी है।गोरिल्ला प्राणी छोटे समुह में रहते है जिसे “बैंड” कहते है। बैंड में एक उम्रदराज नर गोरिल्ला, एक या एक से ज्यादा मादा गोरिल्ला और उनके बच्चे होते है।

 

मादा गोरिल्ला का गर्भावस्था का समय मनुष्य की तरह ही 9 माह का होता है। मादा एक बार में केवल एक ही बच्चे को जन्म देती है। गोरिल्ला का बच्चा जन्म से करीब 3 वर्ष तक मां के साथ ही रहता है। मादा गोरिल्ला करीब 5 महीनों तक बच्चे को छाती से लगाकर रखती है। गोरिल्ला एक शाकाहारी जानवर है। इसका मुख्य भोजन फल, पत्तियां, टहनियां है। यह जानवर पानी बहुत कम पिता है। कभी कभी गोरिल्ला चींटियों को भी खाता है। गोरिल्ला का निवास स्थान मुख्यतः जंगल है। ये तराई क्षेत्र, बांस के जंगल इत्यादि में मिलता है। कुछ गोरिल्ला पहाड़ों के जंगलों में भी निवास करते है। ये मुख्यतः जमीन पर ही रहते है। गोरिल्ला की प्रजाति विलुप्त की श्रेणी में आती है। मनुष्य इस जानवर का शिकार करता है। जंगलों में तेंदुए इसका शिकार करते है। इस प्राणी को बचाये जाने की जरूरत है। गोरिल्ला (Gorilla) प्राणी का औसत जीवनकाल 35 से 40 वर्ष होता है।

 

 

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9. जिराफ

 

जिराफ़ शब्द की व्युत्पत्ति अरबी भाषा के अल-ज़िराफ़ा से हुयी है। यह नाम अरबी भाषा में शायद किसी अफ्री़की भाषा के नाम से पहुँचा है। सन् 1590 के लगभग अरबी भाषा के ज़रिए जिराफ़ा शब्द इतालवी भाषा में प्रविष्ट हुआ।

 

जिराफ़ (जिराफ़ा कॅमेलोपार्डेलिस) अफ़्रीका के जंगलों मे पाया जाने वाला एक शाकाहारी पशु है। यह सभी थलीय पशुओं मे सबसे ऊँचा होता है। तथा जुगाली करने वाला सबसे बड़ा जीव है। इसका वैज्ञानिक नाम ऊँट जैसे मुँह तथा तेंदुए जैसी त्वचा के कारण पड़ा है। 

 

जिराफ़ अपनी लंबी गर्दन तथा टांगें और अपने विशिष्ट सींगों के लिये भी जाना जाता है। यह औसतन 5-6 मी. ऊँचा होता है। तथा नर का औसतन वज़न 1,200 कि. और मादा का 830 कि. होता है। जिराफ अपने पैरों की हडि्डयों में यांत्रिक तनाव के चलते ही अपने शरीर का करीब एक हजार किलो भार उठा पाता है। यह जिराफ़िडे परिवार का है। तथा इसका सबसे नज़दीकी रिश्तेदार इसी कुल का अफ़्रीका में पाया जाने वाला ओकापी नामक प्राणी है। इसकी नौ प्रजातियाँ हैं। जो कि आकार, रंग, त्वचा के धब्बों तथा पाये जाने वाले क्षेत्रों में एक दूसरे से भिन्न हैं।

 

आवास एवं व्यवहार

 

जिराफ़ अफ़्रीका में उत्तर में चैड से दक्षिण अफ्रीका तथा पश्चिम में नाइजर से पूर्व में सोमालिया तक पाया जाता है। अमूमन जिराफ़ खुले मैदानों तथा छितरे जंगलों में पाये जाते हैं। जिराफ़ उन स्थानों में रहना पसन्द करते हैं। जहाँ प्रचुर मात्रा में बबूल या कीकर के पेड़ हों क्योंकि इनकी पत्तियाँ जिराफ़ का प्रमुख आहार है। अपनी लंबी गर्दन के कारण इन्हें ऊँचे पेड़ों से पत्तियाँ खाने में कोई परेशानी नहीं होती है। वयस्क परभक्षियों का कम ही शिकार होते हैं। लेकिन इनके शावकों का शिकार शेर, तेंदुए, लकड़बग्घे तथा जंगली कुत्ते करते हैं। आम तौर पर जिराफ़ कुछ समय के लिये एकत्रित होते हैं। तथा कुछ घण्टों के पश्चात अपनी-अपनी राह चल देते हैं। नर अपना दबदबा बनाने के लिये एक दूसरे से अपनी गर्दनें लड़ाते हैं।

 

  • जिराफ दिन में कम नींद लेने वाले जानवरों में गिना जाता है। उदाहरण के तौर पर जिराफ 24 घंटे में मात्र 1 घंटे के लिए ही सोते हैं।
  • जिराफ का दिल 2 फीट लंबा होता है। और वजन 20 पाउंड होता है। यह बड़ा और मजबूत दिल हर मिनट 75 लीटर रक्त पंप करता है।
  • जिराफ की ऊंट की तरह कई दिनों तक बिना पानी पिए रह सकता है.
  • जिराफ अपनी लंबी टांगों के कारण 35 मील प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ सकते हैं। परंतु यह दौड़ छोटी दूरी की होती है।
  • जिराफ पानी में तैरना नहीं जानते इसीलिए यह नदी- नालो के बीच में कम ही जाते है।
  • जिराफ के 50% बच्चे जन्म लेने के 6 महीने के अंतराल में ही तेंदुआ, शेर, लोमड़ी, जंगली कुत्तों आदि के शिकार हो जाते हैं।
  • एक स्वस्थ नर जिराफ लगभग 18 फीट तक ऊचा हो सकता है। और मादा जिराफ 14 फ़ीट लंबी होती है।
  • जिराफ के पैर लगभग 6 फीट या इससे भी ज्यादा लंबे हो सकते हैं।
  • जिराफ की जीभ बहुत लंबी होती है। यह जीभ के द्वारा अपने नाक,कान व चेहरे को आसानी से चाट सकता है।
  • एक स्वस्थ जिराफ का जीवनकाल लगभग 30 वर्षों का होता है।
  • जिराफ शाकाहारी जीवो की श्रेणी में आने वाला जीव है। और यह भोजन के रूप में फूल,फल,पत्तियां और पेड़ों की टहनी खाते हैं।
  • जिराफ शिकार से बचने के लिए अपने पैरों का इस्तेमाल करता है। और इसके पैर का किया गया एक वार भी शेर जैसे जानवर की जान ले सकता है।
  • मादा जिराफ जब भी भोजन की तलाश में जंगल में घूमती है। तो इसके बच्चे की देखभाल नर जिराफ करते है।
  • जिराफ की आवाज इंसान नहीं सुन सकते क्योंकि यह बहुत धीमी आवाज में किस करते हैं। जो इंसानों के कानों द्वारा सुन पाना असंभव है।
  • जिराफ की लंबी गर्दन होने के बावजूद जिराफ को नदी,कुंड से पानी पीने के लिए अपने पैरों को मोड़ना पड़ता है। जिराफ ऐसा इसलिए करता है। क्योंकि जिराफ के पैर उसकी गर्दन से भी लंबे होते हैं।
  • मादा जिराफ अपने बच्चे को खड़े होकर ही जन्म देती है। और बेबी जिराफ जन्म के मात्र 1 घंटे बाद ही उठ कर चलने लगता है। और मात्र कुछ ही मिनट बाद दौड़ना भी शुरू कर देता है।

 

 

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10.  पोलर बियर्स

 

पोलर बियर्स (उर्सूस मारीटिमस) एक ऐसा भालू है। जो आर्कटिक महासागर, उसके आस-पास के समुद्र और आस-पास के भू क्षेत्रों को आवृत किये, मुख्यत आर्कटिक मंडल के भीतर का मूल वासी है। यह दुनिया का सबसे बड़ा मांस भक्षी है। और सर्वाहारी कोडिअक भालू के लगभग समान आकार के साथ, यह सबसे बड़ा भालू भी है। एक वयस्क नर का वज़न लगभग 350–680 कि॰ग्राम (12,000–24,000 औंस) होता है। जबकि एक वयस्क मादा उसके करीब आधे आकार की होती है। हालांकि यह भूरा भालू से नज़दीकी रूप से संबंधित है। लेकिन इसने विकास करते हुए संकीर्ण पारिस्थितिकीय स्थान हासिल किया है। जिसके तहत ठंडे तापमान के लिए, बर्फ, हिम और खुले पानी पर चलने के लिए और सील के शिकार के लिए, जो उसके आहार का मुख्य स्रोत है। अनुकूलित कई शारीरिक विशेषताएं हैं। यद्यपि अधिकांश पोलर बियर्स भूमि पर जन्म लेते हैं। वे अपना अधिकांश समय समुद्र पर बिताते हैं। (अतः उनके वैज्ञानिक नाम का अर्थ है। "समुद्री भालू") और केवल समुद्री बर्फ से लगातार शिकार कर सकते हैं। जिसके लिए वे वर्ष का अधिकांश समय जमे हुए समुद्र पर बिताते हैं।

 

पोलर बियर्स को एक नाज़ुक प्रजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है। जिसकी 19 में से 8 उप-जनसंख्या में गिरावट देखी गई है। दशकों तक, अप्रतिबंधित शिकार ने इस प्रजाति के भविष्य के प्रति अंतर्राष्ट्रीय चिंता को उभारा; कोटा और नियंत्रण के लागू होने के बाद से आबादी ने फिर से सकारात्मक रुख़ अपनाया हज़ारों वर्षों तक ध्रुवीय भालू,आर्कटिक के स्वदेशी लोगके भौतिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक जीवन का एक प्रमुख केंद्र रहा है। और ध्रुवीय भालू का शिकार उनकी संस्कृति में महत्वपूर्ण बना हुआ है।

 

कौन्स्टैटिन जॉन फिप्स ध्रुवीय भालू को एक अलग प्रजाति के रूप में वर्णन करने वाले प्रथम व्यक्ति थे। उन्होंने उर्सुस मारीटिमस का वैज्ञानिक नाम चुना जो 'समुद्री भालू' का लैटिन रूप है। जो इस जानवर के देशी आवास से प्रेरित है। इनुइट इस जानवर को नानुक के रूप में निर्दिष्ट करते हैं। (इनुपिएक भाषा में नानुक के रूप में लिप्यंतरित, युपिक भी साइबेरियाई युपिक में इस भालू को नानुक कहते हैं। चुकची भाषा  में यह भालू उम्का है। हालांकि अभी भी उपयोग किया जाने वाला एक पुराना शब्द है (Oshkúj, जो कोमीओस्की, "भालू" से आया है)  फ्रेंच में, ध्रुवीय भालू को अवर्स ब्लॉन्क ("सफेद भालू") के रूप में सन्दर्भित किया जाता है। या ours polaire ("ध्रुवीय भालू")  नार्वे प्रशासित स्वालबार्ड द्वीपसमूह में, ध्रुवीय भालू को ("बर्फ भालू") कहा जाता है।

 

नरभक्षी हो रहे हैं पोलर बियर : जलवायु परिवर्तन और मानवीय दखल ध्रुवीय भालुओं के व्यवहार में भी बदलाव ला रहा है। रूसी वैज्ञानिकों ने अपने शोध में दावा किया है। ये भालू नरभक्षी हो रहे हैं। वे भोजन की तलाश में लंबी-लंबी दूरी तय मनुष्यों के संपर्क में आ रहे हैं। इतना ही नहीं घटते भोजन स्रोतों के चलते वे एक-दूसरे को मार भी रहे हैं। इनमें सबसे ज्यादा निशाना बच्चों वाली मादाओं को बनाया जा रहा है। 

 

19 में से 13 प्रजातियों पर अध्ययन किया : रिसर्च के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने पोलर बियर की 19 में से उन 13 प्रजातियों का अध्ययन किया है। जिनकी दुनियाभर में जनसंख्या का 80 फीसदी तक है। रिसर्च के दौरान शोधकर्ताओं ने कनाडाई आर्कटिक इलाके के द्वीप समूहों के पोलर बियर्स को छोड़ दिया है। इसकी वजह यह है कि यहां के भौगोलिक इलाके में इनका अनुमान लगाना बेहद मुश्किल है।

 

दुनियाभर में 19 प्रजातियों के 26,000 पोलर बियर्स : दुनियाभर में इनकी 19 प्रजातियों के 26,000 पोलर बियर्स हैं। ये नार्वे से लेकर कनाडा और साइबेरिया तक पाए जाते हैं। पोलर बियर्स भोजन के लिए मछलियों पर निर्भर रहते हैं। ये बर्फ के गड्ढे में मिलने वाली मछलियों को पकड़कर खाते हैं। कई बार इन्हें भोजन खोजने में कई दिन लग जाते हैं। हाल ही में भूख से तड़पते और कंकाल जैसे दिखते पोलर बियर की तस्वीरें वायरल हुई थीं। 

 

पोलर बियर्स घटती जनसंख्या


जैसे-जैसे ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ रही है। ग्लेशियरों की बर्फ पिघलती जा रही है। इनकी घटती संख्या के पीछे यह सबसे बड़ा कारण है। शोधकर्ताओं का दावा है कि जैसा हमने अंदाज लगाया था। इनके प्रजनन में होने वाली गिरावट वैसी ही है। एक वक्त ऐसा आएगा जब इन्हें लम्बे समय तक भोजन नहीं मिल पाएगा और ये प्रजनन के लायक नहीं बचेंगे।

 

 

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Blog Upload on - Dec. 10, 2022

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