मछली पालन रोजगार एक बेहतर विकल्प के तौर पर विकसित होता जा रहा है। युवा इस क्षेत्र में काफी आकर्षित हो रहे हैं। इसके साथ ही इस क्षेत्र में नयी नयी तकनीक का इजाद किया जा रहा है ताकि मछली उत्पादन को बढ़ाया जा सके। केंद्र और राज्य सरकार भी मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए और मछली पालकों को प्रोत्साहित करने के लिए कई प्रकार की योजनाएं चला रहे है। इन योजनाओं से मत्स्य पालक लाभान्वितत हो रहे हैं। मछली पालन के लिए सबसे जरूरी होता हैं। इससे जुड़ी जानकारी. मछली पालकों को मछली पालन से जुड़ी हर जानकारी होनी चाहिए ताकि वो बेहतर उत्पादन कर सके हैं। और उन्हें ज्यादा से ज्यादा मुनाफा हो सके।
मछली पालन करने के लिए आपको इसकी ट्रेनिंग लेना काफी जरूरी है। मछली के बीज हैचरी या मछली पालन से ही खरीदने चाहिए. तालाब में मछली बीज डालने के बाद एक महीने के भीतर यह पूरी तरह से तैयार हो जाता है। अगर आप मछली पालन करना चाहते हैं। तो फिर आपको छोटे तालाब ही बनाने चाहिए।
हालांकि भारत में मछली पालन स्थापित करना कोई आसान काम नहीं है। लेकिन जब मछली पालन व्यवसायिक तौर पर करना ही हो तो, थोड़ी बहुत परेशानियां तो उठानी ही पड़ेंगी। और व्यवसायिक तौर पर यह व्यापार स्थापित करने के लिए उद्यमी को भिन्न भिन्न प्रक्रियाओं से होकर गुज़रना पड़ेगा। जिनका वर्णन नीचे संक्षिप्त रूप में दिया गया है।
मछली पालन व्यवसाय कई लोग इस तरह के व्यवसाय को Fisheries भी कहते हैं। वर्तमान में मछली का सेवन लोग न सिर्फ स्वादिष्ट होने के कारण करते हैं। बल्कि इसके सेवन से अनेकों स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होते हैं। इसलिए भी इसका सेवन बहुतायत मात्रा में किया जाता है। मछली को प्रोटीन का प्रमुख स्रोत के रूप में इस्तेमाल में लाया जाता है। इसलिए इसकी बिक्री हर क्षेत्र चाहे ग्रामीण हो या शहर में लगातार होती रहती है। वैसे देखा जाय तो लोगों की मछली सम्बन्धी मांग स्थानीय स्तर पर उस क्षेत्र में उपलब्ध स्थानीय नदियों के माध्यम से ही पूर्ण हो पाती है। लेकिन इन सबके बावजूद एक अधिकांश हिस्सा व्यवसायिक तौर पर मछली पालन करके भी मछली सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रयासरत रहता है। चूँकि भारत में अभी भी मछली के तालाबों मछली सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रयासरत रहता है। चूँकि भारत में अभी भी मछली के तालाबों की भारी कमी है। इसलिए मछली की आवश्यकताओं की पूर्ति अधिकांश तौर पर नदियों एवं समुद्रों पर ही निर्भर हैं।
यद्यपि यह भी देखने में आया है की बहुत सारे लोग केवल अपने शौक एवं प्रोटीन सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी मछली पालन करते हैं। लेकिन ये केवल अपने एवं अपने परिवार की मछली सम्बन्धी आवश्यकताओं के अनुरूप ही उत्पादन करते हैं इसलिए इन्हें व्यवसायिक श्रेणी में शामिल नहीं किया जा सकता। लेकिन इन सबके बावजूद मछली पालन भारत की कुल सकल उत्पाद में एक अहम् भूमिका अदा करता है। और जीडीपी में कुल कृषि उत्पादों की हिस्सेदारी में से लगभग एक चौथाई हिस्सेदारी मछली पालन की होने के कारण यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि बन गई है। एक विश्वसनीय आंकड़े की बात करें तो भारत के 60% से अधिक लोग खाने में मछली बेहद पसंद करते हैं और भारत जैसे जनाधिक्य वाले देश का 60% लगभग 78 करोड़ होता है। जिसका अभिप्राय है की भारत में लगभग 78 करोड़ लोग खाने में मछली बेहद पसंद करते हैं। इसलिए इतनी बड़ी जनसँख्या की मछली सम्बन्धी माँग को सिर्फ नदियों, समुद्रों के माध्यम से पूर्ण कर पाना कठिन है। इसलिए इस अवसर का लाभ कोई भी भारतीय मछली पालन व्यापार शुरू करके ले सकता है।
अभी हाल में किए गए सर्वेक्षण के मुताबिक मछली पालन करने के व्यापार में लगातार तेजी दर्ज की जा रही है। ऐसे में आप इस व्यापार के जरिए अच्छा खासे पैसे हर साल कमा सकते हैं।इतना ही नहीं आप अपने इस व्यापार को विदेशों तक भी पहुंचा सकते हैं। और दूसरे देशों में भी अपनी मछलियां निर्यात कर सकते हैं।
चूँकि भारत में मछली पसंद करने वालों की संख्या लगभग 60% से अधिक है इसलिए इतनी भारी माँग को पूर्ण करने के लिए मछली पालन में अपार संभावनाएं व्याप्त हैं।
मछली में प्रोटीन बहुतायत मात्रा में पाया जाता है इसलिए डॉक्टर द्वारा भी अनेक लोगों को मछली सेवन करने के लिए कहा जाता है।
इस व्यापार को शुरू करने में ज्यादा खर्चा नहीं आता है। और आप इसे कम लागत यानी कम पैसों में शुरू कर सकते हैं। इतना ही नहीं हमारे देश की नदियों में मछलियां बहुत अधिक मात्रा में पाई जाती हैं। ऐसे में कभी भी इस व्यापार में गिरवाट नहीं आती है।
हमारे देश भारत की जलवायु एवं वातावरण मछली पालन के अनुकूल है इसलिए इस तरह के बिजनेस को करने में जोखिम काफी कम हो जाता है।
भारत को प्रकृति ने अनेकों नदियों, नालों, झीलों एवं अन्य पानी के स्रोतों से बेहतर बनाया है इसलिए उद्यमी किसी भी पानी के स्रोत के नज़दीक मछली पालन व्यापार शुरू कर सकते है।
यद्यपि इस तरह के बिजनेस को सफल बनाने के लिए मछली की प्रजाति का चयन करना बेहद ही जटिल प्रक्रिया है। लेकिन भारत में अनेकों प्रकार की मछलियों की जाति एवं उपजाति पायी जाती है। उद्यमी इनमें से किसी ऐसी प्रजाति जो जल्दी बड़ी होती हों का चयन मछली पालन के लिए कर सकते है।
ऐसे किसान जो पहले से कृषि कार्य एवं अन्य फार्मिंग जैसे डेयरी, गोट फार्मिंग इत्यादि कर रहे हों। वे भी इस तरह का यह बिजनेस कर सकते हैं क्योंकि ग्रामीण इलाकों में कृषि मजदूर काफी सस्ती दरों पर उपलब्ध हो जाती हैं।
ऐसे लोग जो कोई अन्य काम या फिर कोई नोकरी ही क्यों न कर रहे हों वे भी समय निकालकर मछली पालन व्यापार शुरू कर सकते हैं। लेकिन इसके लिए उनके पास उपयुक्त जमीन एवं मजदूरों का होना अति आवश्यक है।
यह कृषि से जुड़ा हुआ व्यवसाय है इसलिए भारत सरकार ग्रामीण इलाकों में रोजगार एवं उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए ऐसे व्यवसायों को विभिन्न योजनाओं के तहत प्रोत्साहित करती है। अनेक योजनाओं के तहत इस तरह के बिजनेस के लिए लिए जाने वाले लोन पर सब्सिडी भी दी जाती है।
मछली पालन करने के लिए सबसे पहले तालाब या टैंक का निर्माण करना होता है. इसको बनाने के लिए आपको जमीन की जरुरत पड़ती है। अर्थात सबसे पहला कदम तालाब या मछलियों के रखने के स्थान का निर्माण करना है।
मत्स्य या मछली पालन के लिए उचित स्थान का चयन करना बेहद आवश्यक है। ध्यान रखे की मछली पालन में वातावरण एवं जगह का बहुत फर्क पड़ता है। उदाहरण के तौर पर सर्दियों में या ठंडे इलाकों में मछली का आकार धीमी गति से बढ़ता है। अगर आप भारत में रहते हैं। तो कोशिश करें की तालाब का निर्माण सर्दियों के मौसम में पूरा कर लें। जिससे गर्मियां आने से थोड़ा पहले ही आप मछलियों को पालना शुरू कर दें।
तलाब या टैंक का निर्माण आप कई तरीकों से कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर आप मेहनत और समय बचाना चाहते हैं। तो प्लास्टिक के बड़े-बड़े टैंक खरीद सकते हैं। वहीं अगर आप जमीन पर इसका निर्माण करना चाहते हैं। तो आप मशीन की सहायता से उस जगह को तालाब के आकार में बना सकते हैं। वहीं अगर आपका बजट कम है। तो आप फावड़े की मदद से भी तालाब का निर्माण आसानी से कर सकते हैं। निर्माण करने के बाद ब्लीचिंग पाउडर और मिट्टी में चूने का छिड़काव जरूर कर दें। ऐसा करने से चयनित क्षेत्र में मछलियों को हानि पहुंचाने वाले कीट एवं अनावश्यक जीव मर जाते हैं।
मछली उत्पादन में मोटर पम्प की जरूरत पानी को भरने और बदलने के लिए होती है। क्योंकि एक टैंक में कई हजार लीटर पानी भरा जाता है। जिसे भरने में के लिए बड़े मोटर पम्प की आवश्यकता होती है।
यद्यपि उद्यमी को तालाब इस तकनीक से तैयार करना होता है की मछलियों को तालाब के अन्दर भी भोजन मिलता रहे। लेकिन मछलियों को इनर फीड के अलावा आउटर फीड की भी आवश्यकता होती है। ध्यान रहे अच्छी गुणवत्तायुक्त मछली का भोजन मछलियों की जल्दी वृद्धि करने में सहायक होता है। और भारतवर्ष का अधिकतर किसान या उद्यमी जो मछली पालन से जुड़ा हुआ है वह तालाब में उत्पन्न होने वाले भीतरी भोजन को ही मछलियों के लिए उपयुक्त मानता है।
लेकिन यदि उद्यमी मछलियों का व्यवसायिक उत्पादन करना चाहता है तो केवल भीतरी खाना ही मछलियों के लिए पर्याप्त नहीं है और उद्यमी को पौष्टिक एवं उच्च गुणवत्तायुक्त आउटर भोजन भी मछलियों को प्रदान करना होगा।
आंतरिक खाना से आशय तालाब में उत्पादित खाने से है । इसमें छोटे छोटे कीड़े मकोड़े जिन्हे मछलियां खाती हैं वे आते हैं । लेकिन यह सब उत्पादित हो, इसके लिए आपको महीने में दो बार मछली का तालाब फर्टिलाइजेशन की प्रक्रिया करनी पड़ती है। आंतरिक खाना उत्पादित करने हेतु जैविक खाद एवं रासायनिक खादों का उपयोग किया जा सकता है। इसमें गोबर का उपयोग भी हो सकता है।
मछली पालन व्यापार करने वाले उद्यमी को तालाब का वातावरण तो मछेलियों के अनुकूल रखना ही होता है। लेकिन साथ में पौष्टिक एवं गुणवत्तायुक्त भोजन भी मछलियों को खिलाना होता है। लेकिन इन सबके अलावा मछलियों का उचित प्रबंधन एवं देखभाल भी करनी होती है। विशेषकर जब मछलियों की वृद्धि होती रहती है। तो उन्हें विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। इसलिए उद्यमी को चाहिए की वह तालाब के पानी का PH लेवल नियमित तौर पर टेस्ट करे।
एक आंकड़े के मुताबिक मछली पालन के लिए आदर्श PH लेवल 7-8 है। इसके अलावा उद्यमी को मछली के तालाब में मछलियों को नुकसान पहुँचाने वाले विभिन्न शिकारियों जैसे बगुले एवं अन्य पक्षियों से उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी। और मछली की बीमारियों के खिलाफ भी उद्यमी को आवश्यक कदम उठाने की आवश्यकता होगी। जैसा की बीमारियों के बारे में कहा जाता है। की इन्हें रोकना ईलाज करने से बेहतर है। इसलिए उद्यमी को मछलियों का प्रबंधन एवं देखभाल ऐसी करनी चाहिए। की उनके स्वास्थ्य पर कोई भी प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।
उद्यमी को एक लाभकारी मछली पालन बिज़नेस के लिए अच्छी नस्ल वाली मछली का चुनाव करना बेहद आवश्यक है। क्योकि खेती व्यवसाय चाहे बकरी पालन हो डेरी फार्मिंग हो या फिर मुर्गी पालन एक लाभकारी बिज़नेस तभी हो सकता है। जब उद्यमी द्वारा जल्दी बढ़ने वाली नस्ल का चुनाव किया गया हो। Fish Farming के लिए मछली की नस्ल का चयन करते समय अपने क्षेत्र में मछलियों की मांग, और जिस मछली की नस्ल जल्दी और ढंग से बड़ी हो सकती है, इत्यादि बातों का ध्यान रखें।
आप चाहें तो किसी एक नस्ल का उत्पादन न करके भिन्न भिन्न नस्लों का उत्पादन एक साथ कर सकते हैं । जैसे कुछ मछलियाँ ऐसी होती हैं जिनको तले (bootom) में रहने की आदत होती है। और कुछ मछलियाँ ऐसी होती हैं जिन्हें पानी के बीचों बीच रहने की आदत होती है । इसके अलावा कुछ मछलियाँ ऐसी होती हैं जिन्हें पानी के उपरी सतह पर रहने की आदत होती है ।
अगर उद्यमी एक साथ रोहू, मृगल, कतला मछलियों को अपने मछली का तालाब का हिस्सा बनाता है। तो उसके मछली का तालाब का कोई भी हिस्सा व्यर्थ नहीं जायेगा। इंडिया की जलवायु के हिसाब से मुख्य मछलियों की नस्लें निम्न हैं।
कतला मछली भारत की सबसे तेजी से बढ़ती हुई मछलियों की प्रजाति में से एक प्रजाति है। जिसे तालाबों के लिए उपयुक्त माना जाता है। और इसका वितरण व्यापक रूप से भारत के अलावा नेपाल, पाकिस्तान, बर्मा और बांग्लादेश में किया जाता है। इस मछली की आदत पानी के उपरी सतह पर रहने की होती है। जहाँ ये कतला मछलियां पानी में तैरते हुए सूक्ष्म जीवों का शिकार अपने भोजन के लिए करती हैं।
कतला प्रजाति की वयस्क मछलियाँ अधिकतर पलवक का ही भोजन करती हैं। लेकिन कभी - कभी पानी में सड़ने गलने वाले मैक्रो वनस्पति,पादप पलवक और छोटे 0- छोटे घोंघों को भी अपने भोजन के प्रयोग में लाती हैं। ये मछलियों की प्रजाति अपनी उम्र के दूसरे साल में परिपक्व होती हैं। और इस प्रकार की मछलियों में इनके बॉडी के भार के अनुसार प्रति किलो 70000 से अधिक अंडे देने की क्षमता होती है।
वर्षा ऋतु में इस प्रकार की मछलियां प्राकृतिक रूप से अभिजनन करती हैं। या किसी नर मछली के संपर्क में आने के बाद भी ये अभिजनन करती हैं। कतला प्रजाति की मछलियां मछली का तालाब में अभिजनन नहीं करती। हालाँकि मछली के बीज को तालाबों में आसानी से पाला जा सकता है। मिश्रित मछली पालन प्रणाली में इस प्रकार की मछलियों का भार 1 साल में एक किलो होता है।
रोहू मछली की प्रजाति भारत, नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान और बर्मा की नदियों में प्राकृतिक रूप से निवासित होने वाली प्रजाति है। यह मछलियों की प्रजाति भी तालाबों के लिए ठीक मानी जाती है। और वर्तमान में रोहू मछली की यह प्रजाति विश्व के अनेक देशों जैसे श्री लंका, जापान, मॉरिशस, मलेशिया, फिलीपींस थाईलैंड इत्यादि में फैल चुकी है। साधरणतया रोहू मछली जलीय पारिस्थितिकी तंत्र में स्तम्भ क्षेत्र में निवासित होती हैं। और पौंधों और वेजिटेबल के कतरों से अपना पेट भरती हैं।
कतला मछली के जैसे ही रोहू मछली भी नदियों में अभिजनन करती हैं। या फिर नर मछली से सम्बन्ध स्थापित करके इन मछलियों की प्रजाति में अभिजनन की क्षमता अपनी उम्र के दूसरे वर्ष में आती है। और कतला मछली की तरह रोहू मछली भी मछली का तालाब में प्रजनन नहीं कर सकती। रोहू मछली में एक अभिजनन मौसम के दौरान 2 लाख से 3 लाख के बीच अंडे देने की क्षमता होती है।
लेकिन यह निर्भर करता है। मछली के आकार पर रोहू मछली अप्रैल से सितम्बर महीनो के बीच अंडे देती हैं। नदियों से मछली का बीज लेके, रोहु मछली का पालन मछली का तालाब में आराम से किया जा सकता है। मछली का तालाब में इन रोहू मछलियों को पालने पर इनका वजन एक साल में लगभग 900 ग्राम होता है।
मृगल मछली की प्रजाति भी भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, वर्मा इत्यादि की नदियों पाई जाती है। मछलियों की प्रजाति का मुख्य भोजन हरी शैवाल, डायटम, सड़ी गली सब्जी , कीचड़ इत्यादि है। चूँकि मृगल मछली नीचले सतह पर पाई जाने वाली जीवाणुओ का सेवन करती हैं। इसलिए एक ही मछली का तालाब में रोहू मछली और कतला मछली के साथ साथ इनका पालन करना उपयुक्त माना जाता है।
मृगल मछली एक या दो साल में परिपक्व होती हैं। यह निर्भर करता है। उस स्थान की कृषि जलवायु की परिस्तिथियों पर मृगल मछली में 12 लाख से 15 लाख तक अंडे देने की क्षमता होती है। इनके अंडे देने का मौसम दक्षिण पश्चिम मानसून की अवधि के साथ जुड़ा हुआ है। यह भी कतला और रोहु की तरह तालाब में अभिजनन नहीं कर सकती। यह मछलियों की प्रजाति एक मौसम में दो बार अभिजनन कर सकती है। मछली का तालाब में मृगल मछली को पालने से एक साल में इनका वजन 1 किलो हो जाता है।
सिल्वर कार्प मछली साधरणतया दक्षिणी मध्य चीन और सोवियत संघ के खाबरोवस्क बेसिन में पाई जाती हैं। जहाँ से इनका प्रतिरोपण भारत-प्रशांत क्षेत्र में होकर भारत में भी हुआ। प्राम्भिक रूप से यह मछलियों की प्रजाति सतह निवासी (यानिकी पानी में उपरी तरफ) और प्राणी मंद पलवक को अपने भोजन के रूप में प्रयोग करने वाली प्रजाति है। लेकिन धीरे धीरे यह पादप पलवक को भी खाने लगती हैं। सिल्वर कार्प मछली को मछली का तालाब में पालने पर खली, चावल के भूसे का मिश्रण इत्यादि खाने के तौर पर दिया जा सकता है।
यह सिल्वर कार्प मछली भी अन्य मछलियों की प्रजाति की तरह मछली का तालाब में अंडे नहीं देती। हालांकि हयपोपिसशन सिस्टम के माध्यम से यह वर्षा ऋतु में ऐसा कर सकती है। इनमे अंडे देने की क्षमता मछलियों के आकार पर निर्भर करती है। लेकिन सिल्वर कार्प मछली प्रजाति की एक मछली 1.5 लाख से 3 लाख तक अंडे देने की क्षमता रखती है।
भारत में इन मछलियों को वयस्क होने में चीन के मुकाबले कम समय लगता है। जहाँ चीन में ये मछलियां 2 से 6 वर्षों में वयस्क होती हैं। वही भारत में ये 1.5 से 2 वर्षों में ही वयस्क हो जाती हैं। इस प्रजाति की नर मछली मादा मछली के मुकाबले जल्दी वयस्क होती है। मिश्रित मछली पालन प्रणाली में सिल्वर कार्प मछली का भार एक वर्ष में 1.5 किलो तक हो जाता है।
मछलियों की प्रजाति में ग्रास कार्प नामक प्रजाति भी उत्तरी -दक्षिणी चीन और सोवियत संघ के खाबरोवस्क बेसिन में पायी जाने वाली प्रजाति है। ग्रास कार्प मछली प्रजाति की मछलियाँ, जैविक नियंत्रण में जलीय खरपतवारो की उपयुक्तता के कारण, इस प्रजाति का पुरे विश्व में व्यापक रूप से प्रत्यारोपण किया गया है।
प्रारम्भिक दिनों में ग्रास कार्प मछली भी पलवग जीवो को अपने खाने हेतु शिकार बनाती है। और फिर धीरे धीरे मक्रोफिट्स को खाना शुरू करती है | इस प्रजाति की मछलियां अधिक भोजन करने वाली होती हैं। इसलिए इनको सब्जी या अन्य खाद्य सामग्री जैसे घास, पत्ते इत्यादि भी खाने के तौर पर दिए जा सकते हैं।
भारत में ग्रास कार्प मछली प्रजाति की मछली को वयस्क होने में लगभग 2 साल का समय लगता है। इस प्रजाति की 4.5 किलो से 7 किलो के बीच की मछलियां, एक अभिजनन में लगभग 4 लाख से 6 लाख के बीच अंडे देती है। हालांकि इस प्रजाति की मछली का भार एक साल में कितना होगा। यह सब मछली के खान पान पर निर्भर करता है। लेकिन एक अनुकूलतम वातावरण में एक साल में ग्रास कार्प मछली का भार 5 किलो तक हो जाता है।
कॉमन कार्प मछली की प्रजाति एशिया के एक शीतोष्ण क्षेत्र मुख्य रूप से चीन में पाई जाती है। लेकिन अब कॉमन कार्प मछली भी दुनिया भर में अधिकतर तौर पायी जाने वाली मछलियों की प्रजाति में से एक है। यह मछली निचली सतहों पर पाई जाने वाली एक सर्वाहारी मछली है। लेकिन मुख्य रूप से कॉमन कार्प मछली सड़ी गली वनस्पति इत्यादि को खाकर अपना पेट भरती है। यह अपने खाने के लिए लगातार निचले स्तर पर ही विचरण करती है। इस मछली की इसी आदत के कारण इसको अन्य मछलियों के साथ पालने में कोई दिक्कत नहीं आती।
वैसे कॉमन कार्प मछली ग्रास कार्प द्वारा उत्पादित मल मूत्र भी खाती है। इसका वजन कितना होगा, यह सब भण्डारण के घनत्व और अनुपूरक खाने पर निर्भर करता है। उष्णकटिबंधी वातावरण में यह मछलियों की प्रजाति अर्थात कॉमन कार्प मछली दो साल में दो बार अंडे देती है। जिनका समयकाल जनवरी से मार्च और जुलाई, अगस्त होता है। उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में यह मछली एक साल में वयस्क हो जाती है। और मिश्रित मछली पालन प्रणाली में कॉमन कार्प मछली का वजन एक साल में 1 किलो होता है।