भारत के अंदर कुक्कुट फार्म 20वीं शताब्दी में कृष्णपन मिशनरी द्वारा व्यवस्थित रूप से शुरू किया गया था। कुक्कुट पालन पशुपालन का एक रूप है जो भोजन के लिए मांस या अंडे का उत्पादन करने के लिए पालतू पक्षियों जैसे मुर्गियां, बत्तख, टर्की और गीज़ को पाला जाता है। है। पोल्ट्री फार्म में तीन तरह के फार्म होते हैं। लेयर फार्म, ब्रायलर फार्म, हैचरी फार्म। जिस फार्म में अंडे का उत्पादन होता है उसे लेयर फार्म कहा जाता है। जिस फार्म में बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है उसे ब्रॉयलर फार्म कहा जाता है।
पोल्ट्री फॉर्म में सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली यह बात है कि आपके पोल्ट्री फॉर्म तक रास्ता होना बहुत जरूरी है। यदि आपके पॉलीफॉर्म तक रास्ता नहीं है, तो पोल्ट्री फॉर्म वाली जो कंपनियां है वह आपको फॉर्म खोलने की अनुमति नहीं देंगे।जिससे आपके फॉर्म तक बड़ी गाड़ी से माल आ भी जाए और माल चला भी जाए।
पोल्ट्री फार्म के लिए जगह ऊंची होनी चाहिए ताकि इधर उधर से पानी ना भरे।
पोल्ट्री फार्म के लिए बिजली का जो कनेक्शन होता है वह कमर्शियल कनेक्शन होता है। यदि आपका कमर्शियल कनेक्शन नहीं है, तो आपको जुर्माना भी पड़ सकता है जिससे आपको काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है। यह भी बात ध्यान देने वाली है। और पोल्ट्री फॉर्म हमेशा पूरब से पश्चिम की तरफ लंबाई में बनना चाहिए जिससे उनको सीधे हवा ना लगे।
यदि उनको हवा लगेगी। डायरेक्ट तो वह बीमार भी हो सकते हैं जिससे आपको काफी क्षति हो सकती है।यदि आप प्राइवेट फॉर्म खोलते हैं तब भी यह सब बातें आपके लिए बहुत जरूरी है, और यदि आप किसी कंपनी के जरिए फॉर्म खोलना चाह रहे है तो यह सब बातें यदि पूरी नहीं होगी तो वह आपको फॉर्म खोलने की अनुमति बिल्कुल भी नहीं देंगे।
कुक्कुट पालन शुरू करने से पहले हमें बहुत सारी जानकारी लेनी होगी,
अगर आपके पास यह सब व्यवस्था है तो आप मुर्गी पालन आसानी से कर सकते है। और मुर्गी पालन के व्यापार से अच्छा पैसा कमा सकते है ।.
जब भी हम कोई व्यापार करते हैं तो उसमें खर्च होने वाले पैसे और उससे जुड़ी अन्य चीजों की उचित व्यवस्था करना बहुत जरूरी है, ताकि हमें उसके बारे में पता चल सके। कितना खर्चा आने वाला है, कितनी व्यवस्था करनी है। यह बिंदु बहुत महत्वपूर्ण है।आजकल बहुत सारी ऐसी हैचरी कंपनियां हैं जो फीड भी प्रोवाइड कराती है, और बच्चे भी आपको पालने के लिए देते हैं। बस आपको अपने घर पर रहकर उनका पालन और देखभाल करना होता है ।,और तैयार होने पर वही लोग आपका माल उठा लेते हैं, और उसमे 8 से ₹10 प्रति किलो मार्जन आपको दे देते हैं।। यह भी एक सुनहरा मौका होता है, जिससे आप अच्छे पैसे कमा सकते हो।
कुक्कुट पालन भी कई प्रकार से किया जाता है। आपको यह भी चुनना होगा कि हमें मुर्गी पालन कैसे करना है। हम किस तरह से करेंगे जो हमारे क्षेत्र में बेहतर होगा, जिससे अधिक लाभ हो।
उदाहरण के लिए - लेयर फार्म, ब्रॉयलर फार्म, हैचरी फार्म आदि।
मुर्गी पालन के लिए सरकार हमें कई प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध कराती है। प्रशिक्षण प्रदान कराना है। जैसे सरकार द्वारा प्रदान किया गया केंद्रीय कुक्कुट विकास संगठन। अगर आप सरकार द्वारा दी गई ट्रेनिंग को भी ले लेंगे तो आपको काफी मुनाफा होगा।
मुर्गी पालन के लिए आपको उच्च गुणवत्ता वाली मुर्गी नस्ल की जरुरत होती है। मुर्गी की नस्ल कई प्रकार की होती है और मुर्गियों का चयन इस बात पर निर्भर करता है की आप किस काम के लिए मुर्गी पालन कर रहे हो. इसलिए अपने जरुरत के हिसाब से मुर्गी नस्ल का चुनाव करे. अगर कोई अंडे के लिए मुर्गी पालन करना चाहता है तो उनके लिए लेयर नस्ल बेहतर होगी । अगर कोई मांस के लिए मुर्गी पालन करना चाहता है तो ब्रायलर नस्ल का चुनाव करे. ।
यह नस्ल भारत के उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और राजस्थान में पाई जाती है। भारत के अलावा यह नस्ल ईरान में भी पाई जाती है जहाँ इसे किसी दूसरे नाम से जाना जाता है।इन मुर्गियों का व्यवहार लड़ाकू टाइप का होता है इसलिए इन्हें लोग लड़ाने वाली प्रतियोगिता में भाग लेते हैं। इसे लड़ाकू मुर्गी के नाम से भी जाना जाता है।
इन मुर्गियों की गर्दन, लंबी और पैर भी लंबे होते हैं और इनके पर चमकीले होते हैं। इन मुर्गियों की अंडा देने की क्षमता कम होती है इसलिए इसका प्रयोग अंडा के लिए नहीं किया जाता है और इनका वजन 4 से 5 किलो के बीच होता है।
कड़कनाथ नस्ल की मुर्गी मध्य प्रदेश में पाई जाती है। इस नस्ल के मीट में 25% प्रोटीन पाई जाती है जो अन्य नस्ल की मीट से अधिक है।और इस नस्ल की मुर्गीयों का मांस काला होता है। काले मांस का पक्षी बोलते हैं। कड़कनाथ नस्ल का मीट का उपयोग कई प्रकार की औषधियां बनाने में किया जाता है , जिससे यह काफी महंगा रहता है, इसलिए इसकी व्यवसाय करना काफी लाभदायक होगा।इस नस्ल की किस्में जेड ब्लैक,पेंसिल और गोल्डन हैं।
इसे ज्यादातर ग्रामीण किसान और जनजाति विकल्पों के लिए विकसित किया गया है। इनका वजन 12 हफ्तों में डेढ़ से 2 किलो होता है।ग्राम प्रिया को भारत सरकार द्वारा हैदराबाद स्थित अखिल भारतीय समन्वय अनुसंधान परियोजना के तहत विकसित किया गया है।इनके मीट का प्रयोग तंदूरी चिकन बनाने में अधिक किया जाता है। ग्राम प्रिया का 1 साल में औसतन 210 से 225 अंडे देती है। इनकी अंडों का रंग भूरा होता है,और उसका वजन 57 से 60 ग्राम होता है।
स्वरनाथ कर्नाटक पशु, चिकित्सा एवं मत्स्य विज्ञान और विश्वविद्यालय बैंगलोर द्वारा विकसित चिकन की एक नकल है।यह 22 से 23 हफ सप्ताह में पूर्ण परिपक्व हो जाती है। तब इनका वजन 3 से 4 किलोग्राम होता है।स्वरनाथ नस्ल की मुर्गी 1 साल में लगभग 180 से 190 अंडे देती है।
यह नस्ल तीन अलग-अलग चिकन नस्लों का क्रॉस नस्ल है, असम स्थानीय(25%), रंगीन ब्रोइलर(25%) और ढेलम लाल(50%)। इस नस्ल की प्रतिवर्ष अण्डे देने की क्षमता लगभग 118-130 होती है जिसका वज़न लगभग 52 ग्राम होता है।इस नस्ल की मुर्गी लगभग 200 दिनों में 1.8 – 2.2 किलोग्राम होता है।
1 | असेल नस्ल |
2 | कड़कनाथ नस्ल |
3 | ग्रामप्रिया नस्ल |
4 | स्वरनाथ नस्ल |
5 | कामरूप नस्ल |