Sheep

भेड़ों में होने वाले रोग और उनसे बचाव

यह बीमारी विषाणु जनित होती है। इसलिए यह एक पशु से दूसरे पशु में बहुत तेजी से फैलता है। इस रोग से ग्रसित पशु के मुंह, जीभ, होंठ व खुरों के बीच की खाल में फफोले पड़ जाते है। भारत सरकार द्वारा इस बीमारी के साल में दो बार टीकाकरण भी किया जाता है। मुंह व जीभ के अन्दर छाले हो जाने से भेड़-बकरियां घास नहीं खा पाती व कमज़ोर हो जाती है।

भेड़ों में होने वाले रोग ब्रूसीलोसिस

यह बीमारी जीवाणु द्वारा होती है, इस बीमारी में गाभिन भेड़ों में चार या साढ़े चार महीने के दौरान गर्भपात हो जाता है, बीमार भेड़ की बच्चेदानी भी पक जाती है| गर्भपात होने वाली भेड़-बकरियों की जेर भी नहीं गिरती, इस बीमारी से मेंढों व बकरों के अण्डकोश पक जाता है तथा घुटनों में भी सूजन आ जाती है, जिससे इनकी प्रजनन क्षमता कम हो जाती है|

भेड़ों में होने वाले रोग गलघोंटू

यह बीमारी भेड़-बकरियों में जीवाणुओं द्वारा फैलता है। जब भेड़ पालक अपने झुंड को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाता है उस समय इस रोग के अधिक फैलने की संम्भावना होती है| इस बीमारी से भेड़-बकरियों के गले में सूजन हो जाती है जिससे उसे सांस लेने में कठिनाई होती है तथा इस बीमारी में भेड़-बकरी को तेज़ बुखार, नाक से लार निकना तथा निमोनिया हो जाता है|

भेड़ों में होने वाले रोग में चर्म रोग

अन्य पशुओं की तरह भेड़-बकरियों में भी जूएं, पिस्सु, इत्यादि परजीवी होते हैं। यह भेड़ों की चमड़ी में अनेक प्रकार के रोग पैदा करते हैं, जिससे जानवर के शरीर में खुजली हो जाती है और जानवर अपने शरीर को बार-बार दूसरे जानवरों के शरीर व पत्थर या पेड़ से खुजलाता है।

भेड़ों में रेबीज रोग

यह बीमारी भेड़ों को पागल कुत्तों/लोमड़ी व नेवले के काटने से होती है। बीमारी हो जाने पर इसका ईलाज हो पाना सम्भंव नहीं है| इसलिए भेड़ पालकों को सुझाव दिया जाता है कि जब भी भेड़-बकरियों को कोई पागल कुत्ता या लोमड़ी काटता है तो तुरन्त नज़दीक के पशु चिकित्सालय/ औषधालय में जाकर इसकी सूचना दें तथा समय रहते इसका टीकाकरण करवाना सुनिश्चित करें|