Goat

पशुओं को सर्दी से बचायें

सबसे पहले पशु को गर्म स्थान पर बांध देवें और उसे मोटे कपडे, कम्बल या बोरा ओढा दे जिससे पशु को सर्दी महसूस नहीं हो, जाडे के मौसम में आग जलाकर भी पशु को गर्मी दी जा सकती है

पशुओं को गलघोंटू रोग

बीमार पशु को अन्य पशुओं से दूर रखें क्योंकि यह तेजी से फैलने वाली जानलेवा बीमारी है। - जिस जगह पर पशु की मृत्यु हुई हो वहां कीटाणुनाशक दवाइओं का छिड़काव किया जाए। -पशुओं को बांधने वाले स्थान को स्वच्छ रखें तथा रोग की संभावना होने पर तुरंत पशु चिकित्सकों से संपर्क करें

पीपीआर बीमारी से बचाएं अपनी भेंड़ और बकरियों को...........

पीपीआर बीमारी से बचाएं अपनी भेंड़ और बकरियों को, यह लक्षण दिखें तो तुरंत करें पशु चिकित्‍सक से संपर्क बीमारी के दो-तीन दिन बाद मुंह के अंदर के भाग में लाली पड़ जाती है। इस तरह के लक्षण दिखाई पड़ते हीं पशुओं को तुरंत पशु चिकित्सक से दिखाना चाहिए। उन्होंने कहा कि टीकाकरण इसकी रोकथाम का प्रमुख उपाय है। भेड़ एवं बकरी प्रजाति के सभी पशुओं का टीकाकरण कराया जा रहा है

निमोनिया

निमोनिया लक्षण: - यदि आप की बकरी में इस तरह के लक्षण जैसे:- ठण्ड से कँपकपी, नाक से तरल पदार्थ का रिसाव, मूंह खोलकर साँस लेना एवं खांसी बुखार जैसी चीजें दिखाई दे तो समझ लें बकरी को निमोनिया रोग है *बचाब एवं उपचार- ठंड के मौसम में बकरियों को छत वाले बाड़े में रखें. एंटीबायोटिक 3 से 5 मिली. 3 से 5 दिन तक खांसी के लिए केफलोन पाउडर 6-12 ग्राम प्रतिदिन 3 दिन तक देते रहे.

भेड़-बकरियों में खुर-मुंह रोग -

रोग के लक्षण:- इस रोग से ग्रस्त जानवरों के मुंह, जीभ, होंठ व खुरों के बीच की खाल में फफोले पड़ जाते है, भेड़-बकरी को तेज़ बुखार आता है तथा उनके मुंह से लार टपकती है, भेड़-बकरियां लंगडी हो जाती है, मुंह व जीभ के अन्दर छाले हो जाने से भेड़-बकरियां घास नहीं खा पाती व कमज़ोर हो जाती है, और कई बार गाभिन भेड़-बकरियों का इस रोग से गर्भपात भी हो जाता है, भेड़-बकरियों के बच्चों की मृत्यु दर अधिक होती है| रोग से बचाव:- इस रोग में सबसे पहले भेड़ पालक को रोग से ग्रस्त जानवरों को अन्य जानवरों से अलग करना चाहिए| बीमार भेड़-बकरियों का ईलाज जैसे मुंह के छालों में वोरोग्लिसरिन मलहम खुरों की सफाई लाल दवाई या नीले थोथे के घोल से या फोरमेलिन के घोल से करनी चाहिए तथा पशु चिकित्सक के परामर्श अनुससार चार-पांच दिन एन्टीवायोटिक इंजेक्शन लगाने चाहिए| प्रत्येक भेड़ पालक को छ: महीने के अन्तराल के दौरान रोग से रोकथाम हेतू टीकाकरण करवाना चाहिए|

भेड़ों में होने वाले रोग और उनसे बचाव

यह बीमारी विषाणु जनित होती है। इसलिए यह एक पशु से दूसरे पशु में बहुत तेजी से फैलता है। इस रोग से ग्रसित पशु के मुंह, जीभ, होंठ व खुरों के बीच की खाल में फफोले पड़ जाते है। भारत सरकार द्वारा इस बीमारी के साल में दो बार टीकाकरण भी किया जाता है। मुंह व जीभ के अन्दर छाले हो जाने से भेड़-बकरियां घास नहीं खा पाती व कमज़ोर हो जाती है।

भेड़ों में होने वाले रोग ब्रूसीलोसिस

यह बीमारी जीवाणु द्वारा होती है, इस बीमारी में गाभिन भेड़ों में चार या साढ़े चार महीने के दौरान गर्भपात हो जाता है, बीमार भेड़ की बच्चेदानी भी पक जाती है| गर्भपात होने वाली भेड़-बकरियों की जेर भी नहीं गिरती, इस बीमारी से मेंढों व बकरों के अण्डकोश पक जाता है तथा घुटनों में भी सूजन आ जाती है, जिससे इनकी प्रजनन क्षमता कम हो जाती है|

भेड़ों में होने वाले रोग गलघोंटू

यह बीमारी भेड़-बकरियों में जीवाणुओं द्वारा फैलता है। जब भेड़ पालक अपने झुंड को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाता है उस समय इस रोग के अधिक फैलने की संम्भावना होती है| इस बीमारी से भेड़-बकरियों के गले में सूजन हो जाती है जिससे उसे सांस लेने में कठिनाई होती है तथा इस बीमारी में भेड़-बकरी को तेज़ बुखार, नाक से लार निकना तथा निमोनिया हो जाता है|

भेड़ों में होने वाले रोग में चर्म रोग

अन्य पशुओं की तरह भेड़-बकरियों में भी जूएं, पिस्सु, इत्यादि परजीवी होते हैं। यह भेड़ों की चमड़ी में अनेक प्रकार के रोग पैदा करते हैं, जिससे जानवर के शरीर में खुजली हो जाती है और जानवर अपने शरीर को बार-बार दूसरे जानवरों के शरीर व पत्थर या पेड़ से खुजलाता है।

भेड़ों में रेबीज रोग

यह बीमारी भेड़ों को पागल कुत्तों/लोमड़ी व नेवले के काटने से होती है। बीमारी हो जाने पर इसका ईलाज हो पाना सम्भंव नहीं है| इसलिए भेड़ पालकों को सुझाव दिया जाता है कि जब भी भेड़-बकरियों को कोई पागल कुत्ता या लोमड़ी काटता है तो तुरन्त नज़दीक के पशु चिकित्सालय/ औषधालय में जाकर इसकी सूचना दें तथा समय रहते इसका टीकाकरण करवाना सुनिश्चित करें|