Buffalo

पशुओं में सन्तुलित आहार क्या है

1 संतुलित आहार पशुओं को स्वादिष्ट व पौष्टिक लगता है। 2 ये पाचक होता है। 3 इसको खिलाने से पशुओं में बीमारियां भी कम होती है। 4 इसके साथ ही दूध व घी में भी बढ़ोत्तरी करता है 5गाय-भैंस ज्यादा समय तक दूध देती है। 6 पशु समय समय पर ग्याभिन हो जाते हैं 7 पशु सभी पोषक तत्व की पूर्ति करता हैं

पशुओं में पागलपन या हलकजाने का रोग (रेबीज)

एक बार लक्षण पैदा हो जाने के बाद इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है| जैसे ही किसी स्वस्थ पशु को इस बीमारी से ग्रस्त पशु काट लेता है उसे तुरन्त नजदीकी पशु चिकित्सालय में ले जाकर इस बीमारी से बचाव का टीका लगवाना चाहिए| इस कार्य में ढील बिल्कुल नहीं बरतनी चाहिए क्योंकि ये टीके तब तक ही प्रभावकारी हो सकते हैं जब तक कि पशु में रोग के लक्षण पैदा नहीं होते|पालतू कुत्तों को इस बीमारी से बचने के लिए नियमित रूप से टीके लगवाने चाहिए तथा आवारा कुत्तों को समाप्त के देने चाहिए| पालतू कुत्तों का पंजीकरण सथानीय संस्थाओं द्वारा करवाना चाहिए तथा उनके नियमित टीकाकरण का दायित्व निष्ठापूर्वक मालिक को निभाना चाहिए

ब्रुसिल्लोसिस (पशुओं का छूतदार गर्भपात)

अब तक इस रोग का कोई प्रभाव करी इस्लाज नहीं हैं| यदि क्षेत्र में इस रोग के 5% से अधिक पोजिटिव केस हों टो रोग की रोकथाम के लिए बच्छियों में 3-6 माह की आयु में ब्रुसेल्ला-अबोर्टस स्ट्रेन-19 के टीके लगाए जा सकते हैं| पशुओं में प्रजनन की कृत्रिम गर्भाधान पद्यति अपना कर भी इस रोग से बचा जा सकता है

गाय के चारा न खाने का कारण

दुधारू पशुओं में कैल्शियम की कमी हो जाती है, जिससे इस तरह की शिकायत हो जाती है। उसके बाद भी फायदा न हो तो पास के सरकारी पशु अस्पताल में ले जाकर चिकित्सक को दिखा लें। भैंस की गर्दन पर फोड़ा है। चारा खाना छोड़ दिया है

गाय को बुखार में क्या दें

सूजन के ऊपर वाली चमडी सूखकर कडी होती जाती है। पशु का उपचार शीघ्र करवाना चाहिए क्योंकि इस बीमारी के जीवाणुओं द्वारा हुआ ज़हर शरीर में पूरी तरह फ़ैल जाने से पशु की मृत्यु हो जाती है। इस बीमारी में प्रोकेन पेनिसिलीन काफी प्रभावशाली है। इस बीमारी के रोग निरोधक टीके लगाए जाते है।

भैंस बीमार हो तो क्या करें?

इसे सुनें बीमार मवेशी को साफ तथा गर्म स्थान पर रखना चाहिए।

भैंस चारा नहीं खा रही है तो क्या करें?

इसे सुनें सर्दी की वजह से भैंस ने चारा खाना छोड़ दिया है। पशु चिकित्सक को बताकर गोली ले आएं। कीड़े मारने की भी दवा भी खिलाएं।

पशुओं के कब्ज का इलाज?

इसके लिए बड़े पशुओं को 500 मिली लीटर तथा छोटे पशुओं को 50-100 मिली लीटर अलसी का तेल पिलाते हैं। इसके कुछ घंटे बाद 25 ग्राम खडिया मिट्‌टी, कत्था 30-60 ग्राम बेल का गूदा 300 ग्राम मिलाकर देना चाहिए अथवा खड़िया मिट्‌टी 25 ग्राम तथा सोंठ 10 ग्राम मिलाकर चावल के मांड के साथ पिलाने से लाभ मिलता है।

भैंस के थन फटने की दवा क्या है?

इसे सुनें इस बीमारी में गर्म पानी का सेक किया जाता है। इसके बाद इसमें आयोडिन क्रीम या ट्रपनटाइन तेल का मसाज किया जा सकता है। थनों में कोई चोट लगने, चेचक की बीमारी, मुंहखुर आदि के कारण थन फट जाते हैं। इस कारण थनों में दर्द होता है।

गलाघोंटू

यह बीमारी गाय – भैंस को ज्यादा परेशानी करती है। भेड़ तथा सुअरों को भी यह बीमारी लग जाती है। इसका प्रकोप ज्यादातर बरसात में होता है। लक्षण – शरीर का तापमान बढ़ जाता है और पशु सुस्त हो जाता है। रोगी पशु का गला सूज जाता है जिससे खाना निगलने में कठिनाई होती है। इसलिए पशु खाना – पीना छोड़ देता है। सूजन गर्म रहती है तथा उसमें दर्द होता है। पशु को साँस लेने में तकलीफ होती है, किसी - किसी पशु को कब्जियत और उसके बाद पतला दस्त भी होने लगता है। बीमार पशु 6 से 24 घंटे के भीतर मर जाता है। पशु के मुंह से लार गिरती है। चिकित्सा – संक्रामक रोग से बचाव और उनकी रोग – थाम के सभी तरीके अपनाना आवश्यक है। रोगी पशु की तुरंत इलाज की जाए। बरसात के पहले ही निरोधक का टिका लगवा कर मवेशी को सुरक्षित कर लेना लाभदायक है। इसके मुफ्त टीकाकरण की व्यवस्था विभाग द्वारा की गई है।

रतौंधी

यह रोग साधारणत: बछड़ों को ही होता है। संध्या होने के बाद से सूरज निकलने के पहले तक रोग ग्रस्त बछड़ा करीब – करीब अद्न्हा बना रहता है। फलत: उसने अपना चारा खा सकने में भी कठिनाई होती है। दुसरे बछड़ों या पशु से टकराव भी हो जाता है। चिकित्सा 1. इन्हें कुछ दिन तक 20 सें 30 बूँद तक कोड लिवर ऑइल दूध के साथ खिलाया जा सकता है। 2. पशु चिकित्सक से परामर्श लिया जाना जरूरी है।

पशुओं में कब्ज की समस्या

पशुओं में कब्ज की समस्या अक्सर होती रहती है, जिस तरह से इंसानों की सेहत उसके पेट के सही रहने पर अच्छी रहती है, ऐसा ही पशुओं के साथ भी होता है। ऐसे में पशु को 60 ग्राम काला नमक, 60 ग्राम सादा नमक, 15 ग्राम हींग, 50 ग्राम सौंफ लेकर 500 ग्राम गुड़ में मिलाकर दिन में दो बार देना चाहिए।

पशुओं में फोड़े का इलाज

कई बार पशुओं में चोट लगने पर शरीर में घाव हो जाते हैं। घाव दो तरह के होते हैं, एक जिनमें चमड़ी फटी न हो और दूसरा जिनमें चमड़ी फट गई हो। जब चमड़ी नहीं फटती तो चोट लगने की जगह पर सूजन आ जाती है या फिर उसके नीचे खून का जमाव हो जाता है। इस दौरान अगर बर्फ या ठण्डे पानी से सिकाई की जाए तो वह घाव नहीं बन पाता। पुराने घाव पर गर्म पानी से सिकाई अधिक फायदेमंद होती है। खुली हुई चोट यदि साधारण हो तो उसे साफ करके कोई भी एंटीसेप्टिक क्रीम लगानी चाहिए। अगर खून बह रहा हो तो टिंक्चर बैंजोइन लगाना फायदेमंद है।

पशुओं के जलने पर क्या करें

जले हुए भाग पर ठंडा पानी डालना चाहिए उसके बाद जैतून या नारियल के तेल का लेप लगाना चाहिए। जले हुए भाग पर बुझे चूने का पानी और अलसी का तेल बराबर भाग में मिलाकर लगाना चाहिए जो अति लाभदायक है।

रक्तस्त्राव

कटी हुई रक्त नलिका पर दबाव देना चाहिए ताकि रक्त का बहना रूक जाये। कटे हुए स्थान को 2-3 सें.मी. ऊपर व नीचे से बांधने से खून रिसना बंद हो जाता है। रक्तस्राव वाले स्थान पर बर्फ या ठण्डे पानी को लगातार डाल कर भी खून का बहना रोका जा सकता हैं। यह ऐसा संभव न हो तो मोटे कपड़े को फिटकरी के घोल में भिगो कर कटे हुए स्थान पर जोर से दबाकर रखना चाहिए

गाय-भैंस में गर्भाशय के बाहर आने की समस्या

इसका मुख्य कारण कैल्शियम व फॉस्फोरस की कमी होता है। अतः गाभिन पशु को 50-100 ग्राम खनिज मिश्रण नित्य ब्याने के 1 से 2 महीने पूर्व देते रहना चाहिए जिससे बेल निकलने की संभावना कम रहती है। अगले पैर नीचे स्थान पर व पिछले पैर ऊंचे स्थान पर रखने चाहिए जिससे उस पर जोर कम पड़े। अगर बेल निकल जाती है तो उसे डिटॉल या लाल दवा की 1 : 100 के अनुपात वाले घोल से साफ करके उसे हाथ से अन्दर कर देना चाहिए। बार-बार बेल निकलने पर निकटतम पशु चिकित्सक से संपर्क स्थापित करना चाहिए।